गेहूं और आटे की कीमतों में असमानता: किसानों और उपभोक्ताओं पर प्रभाव
गेहूं और आटे की कीमतों में उतार-चढ़ाव
समाचार - वर्तमान में गेहूं की कीमतों में गिरावट किसानों के लिए नुकसानदायक साबित हो रही है, जबकि आटे की कीमतें आसमान छू रही हैं, जिससे लोगों का घरेलू बजट प्रभावित हो रहा है। इस समय गेहूं सस्ते दामों पर बिक रहा है, लेकिन आटे की कीमतें पहले से काफी बढ़ गई हैं। इन दोनों के दामों में उतार-चढ़ाव ने ग्राहकों, किसानों और व्यापारियों पर असर डाला है।
गेहूं और आटे की कीमतों में इस उतार-चढ़ाव का मुख्य कारण उनके बीच बढ़ता अंतर है। इस स्थिति में आने वाले समय में गेहूं और आटे की कीमतों में और बदलाव की संभावना है।
आटे की कीमतों में वृद्धि के कारण
अब सभी की नजर इस बात पर है कि गेहूं की कीमतों में गिरावट और आटे की महंगाई का कारण क्या है। कुछ महीने पहले गेहूं की कीमतें बहुत अधिक थीं, जिसके नियंत्रण के लिए सरकार ने कई कदम उठाए।
ओपन मार्केट सेल योजना के तहत गेहूं की बिक्री और भंडारण की नई सीमाएं तय की गईं। इससे गेहूं की कीमतें तो गिर गईं, लेकिन आटे की कीमतें बढ़ गईं। इस स्थिति में चर्चा है कि सरकार ने उपभोक्ताओं के बारे में नहीं सोचा। गेहूं और आटे की कीमतों में बड़ा अंतर किसानों और आम उपभोक्ताओं के बजट को प्रभावित कर रहा है।
आटे की कीमतें पहले वाले स्तर पर
कुछ समय पहले गेहूं की अधिकतम कीमत 2850 रुपये प्रति क्विंटल थी, जो अब 2500 रुपये क्विंटल से भी कम हो गई है। इसके बावजूद, रिटेल में आटा अधिकांश स्थानों पर पहले की तरह ही ऊंचे दामों पर बिक रहा है, लगभग 70 रुपये प्रति किलो।
उपभोक्ताओं को हो रही समस्याएं
जब गेहूं का नया सीजन शुरू हुआ, तो इसके लिए गेहूं का MSP 150 रुपये बढ़ाकर 2425 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया था। बाजार में नई गेहूं की आवक बढ़ने से गेहूं की आपूर्ति में आसानी हुई, जिससे गेहूं की कीमतें नियंत्रित रहीं। लेकिन आटे की कीमतों में वृद्धि से आम लोगों को महंगाई का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, किसानों को गेहूं की कम कीमत मिलने से मुनाफा घट रहा है।
दोनों के दामों में अंतर
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, गेहूं का आटा विभिन्न स्थानों पर 40 से 70 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच बिक रहा है। जबकि गेहूं की औसत कीमत 25 से 60 रुपये प्रति किलोग्राम तक सीमित हो गई है। इस कारण दोनों के दामों में काफी अंतर आ गया है, जिसका असर किसानों और उपभोक्ताओं दोनों पर पड़ रहा है।
गेहूं की कीमतों में गिरावट का कारण
केंद्र सरकार ने होलसेलर्स के लिए गेहूं भंडारण की सीमा को 1000 मीट्रिक टन से घटाकर 250 मीट्रिक टन कर दिया। रिटेलर्स पर 5 मीट्रिक टन गेहूं से 4 मीट्रिक टन गेहूं स्टोर करने की सीमा तय की गई।
भंडारण की सीमा घटने से सरकारी गोदामों में पर्याप्त गेहूं पहुंचा और व्यापारियों ने कम दाम पर गेहूं खरीदा, क्योंकि उन्हें लगता है कि सरकार कभी भी सस्ते दाम में गेहूं बाजार में उतार सकती है। इस कारण गेहूं की कीमतें गिरती चली गईं।