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चीन के रेयर अर्थ एक्सपोर्ट में 9% की वृद्धि, भारत की स्थिति कमजोर

चीन के रेयर अर्थ एक्सपोर्ट में अक्टूबर 2025 में 9% की वृद्धि हुई है, जिससे उसकी वैश्विक बाजार में स्थिति मजबूत हुई है। इस वृद्धि के बीच, भारत कई कारणों से पीछे रह गया है, जिसमें पर्यावरणीय नियम और तकनीकी उन्नयन की कमी शामिल हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने और तकनीकी सुधार करने की आवश्यकता है, ताकि वह चीन के दबदबे को चुनौती दे सके। जानें इस विषय पर और क्या कहती हैं आर्थिक विश्लेषक।
 

चीन की बढ़ती प्रतिस्पर्धा

बीजिंग: अक्टूबर 2025 में चीन के रेयर अर्थ (Rare Earth) निर्यात में तीन महीने के अंतराल के बाद 9% की वृद्धि देखी गई है। इस वृद्धि के साथ, चीन ने वैश्विक बाजार में अपनी स्थिति को मजबूत बनाए रखा है, जबकि भारत इस प्रतिस्पर्धा में पीछे होता जा रहा है।


चीन की रणनीति

विशेषज्ञों के अनुसार, चीन ने उत्पादन क्षमता में वृद्धि, नए खदानों में निवेश और आधुनिक तकनीक के उपयोग के माध्यम से वैश्विक मांग को पूरा करने की योजना बनाई है। रेयर अर्थ धातुएं इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिक वाहनों (EV), बैटरी और उच्च तकनीक उत्पादों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं। चीन ने निर्यात नीतियों में लचीलापन और उत्पादन लागत में कमी लाकर अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी हिस्सेदारी को मजबूत किया है।


भारत की चुनौतियाँ

भारत, जो कि रेयर अर्थ उत्पादन में शीर्ष देशों में से एक है, कई कारणों से चीन के मुकाबले पीछे रह गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में पर्यावरणीय नियम, तकनीकी उन्नयन की कमी और उत्पादन की धीमी गति ने इसे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में कमजोर बना दिया है। इसके अलावा, भारत में निवेश और उद्योग को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों की गति चीन की तुलना में धीमी रही है।


आर्थिक विश्लेषकों की राय

आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि चीन का यह कदम वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स, EV और ऑटोमोबाइल कंपनियों के लिए महंगे और सीमित स्रोतों का संकेत देता है। वहीं, भारत के लिए यह एक अवसर है कि वह अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाकर, तकनीकी सुधार कर और निर्यात नीतियों में बदलाव लाकर वैश्विक बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाए।


भारत की संभावनाएँ

इसके अतिरिक्त, भारत को उच्च गुणवत्ता वाले रेयर अर्थ उत्पाद विकसित करने और वैश्विक ग्राहकों के लिए सप्लाई चेन को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। यदि भारत इस दिशा में तेजी से कदम उठाता है, तो वह चीन के दबदबे को चुनौती दे सकता है और विश्व स्तर पर अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकता है।