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चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया, मतदाता सूची में संशोधन का समय तय करना उसका अधिकार है

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट किया है कि मतदाता सूची में संशोधन का समय तय करना उसकी संवैधानिक जिम्मेदारी है। आयोग ने कहा कि इसमें किसी अन्य संस्था का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जा सकता। अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका पर आयोग ने यह हलफनामा दायर किया, जिसमें अवैध प्रवासियों के नामों को सूची में शामिल करने की समस्या उठाई गई है। आयोग ने राजनीतिक दलों को सही मतदाताओं की मदद करने की सलाह दी है। जानें इस मुद्दे पर और क्या कहा गया है।
 

SIR विवाद पर आयोग का स्पष्टीकरण

SIR विवाद: चुनाव आयोग (ECI) ने स्पष्ट किया है कि विशेष गहन संशोधन (SIR) का समय निर्धारित करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट का नहीं है। आयोग ने शुक्रवार को अपने हलफनामे में कहा कि मतदाता सूची का निर्माण और उसमें संशोधन करना उसकी संवैधानिक जिम्मेदारी है, और इसमें किसी अन्य संस्था का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जा सकता।


संविधान के तहत आयोग की शक्तियां

आयोग ने यह भी बताया कि संविधान के अनुच्छेद 324, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम 1960 के अनुसार, मतदाता सूची से संबंधित सभी शक्तियां केवल उसके पास हैं। अदालत द्वारा किसी निश्चित समय में संशोधन का आदेश देना आयोग की स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। कानून में किसी निश्चित समयावधि का उल्लेख नहीं है, और आयोग परिस्थितियों के अनुसार संशोधन करने के लिए स्वतंत्र है।


विशेष संशोधन की नियमितता की मांग

यह हलफनामा अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका पर दायर किया गया था, जिसमें मांग की गई थी कि देशभर में नियमित अंतराल पर विशेष संशोधन किए जाएं ताकि अवैध प्रवासियों के नाम मतदाता सूची में शामिल न हो सकें। उपाध्याय ने आरोप लगाया कि बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और म्यांमार से आए घुसपैठियों के कारण मतदाता सूचियों में गड़बड़ी हो रही है, जिससे कई राज्यों में जनसंख्या असंतुलन उत्पन्न हो रहा है।


विपक्ष का आरोप और आयोग का जवाब

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चल रही विशेष संशोधन प्रक्रिया पर विपक्षी INDIA गठबंधन ने भी सवाल उठाए हैं। विपक्ष का कहना है कि आयोग मतदाता सूची को पक्षपातपूर्ण बनाने का प्रयास कर रहा है। आयोग ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि राजनीतिक दलों को विरोध प्रदर्शन करने के बजाय सही मतदाताओं की मदद करनी चाहिए।


आधार कार्ड का महत्व

इस बीच, 8 सितंबर को न्यायमूर्ति सूर्या कांत की पीठ ने आदेश दिया था कि आधार कार्ड को मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए 12वें वैध दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाए। आयोग ने इस पर आपत्ति जताई थी, लेकिन अदालत ने कहा कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, फिर भी यह पहचान और निवास का वैध साक्ष्य है।


याचिका खारिज करने की मांग

आयोग ने कोर्ट को बताया कि 1 जनवरी 2026 की पात्रता तिथि मानते हुए विशेष गहन संशोधन पहले ही तय कर लिया गया है। सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को इसके लिए पूर्व तैयारी गतिविधियां शुरू करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके अलावा, 10 सितंबर को दिल्ली में सीईओ सम्मेलन आयोजित कर तैयारी की समीक्षा भी की गई। अंत में, आयोग ने स्पष्ट किया कि मतदाता सूची की शुद्धता बनाए रखना उसकी जिम्मेदारी है, लेकिन संशोधन का समय और तरीका तय करना उसका विशेषाधिकार है। इसी आधार पर आयोग ने याचिका खारिज करने की मांग की।