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जम्मू-कश्मीर के मीरवाइज उमर फारूक की नजरबंदी पर विवाद

जम्मू-कश्मीर के प्रमुख अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारूक ने प्रशासन पर नजरबंदी का आरोप लगाया है। उन्होंने जुमे की नमाज के लिए मस्जिद जाने का प्रयास किया, लेकिन सुरक्षाबलों ने उन्हें रोक दिया। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने इस कार्रवाई की निंदा की है, जबकि प्रशासन ने इसे कानून-व्यवस्था बनाए रखने का कदम बताया है। जानें इस विवाद के पीछे की पूरी कहानी और मीरवाइज के समर्थकों की प्रतिक्रिया।
 

मीरवाइज उमर फारूक की नजरबंदी का मामला

जम्मू-कश्मीर के प्रमुख अलगाववादी नेता और हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक ने हाल ही में आरोप लगाया है कि प्रशासन ने उन्हें उनके निवास पर नजरबंद कर दिया है। उन्होंने जुमे की नमाज के लिए ऐतिहासिक जामिया मस्जिद जाने का प्रयास किया, लेकिन सुरक्षाबलों ने उन्हें रोक दिया।
मीरवाइज के अनुसार, जब उन्होंने श्रीनगर के नगीन क्षेत्र में अपने घर से बाहर निकलने की कोशिश की, तो वहां तैनात सुरक्षा बलों ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया। इस घटना के बाद, हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने एक बयान जारी कर इस कार्रवाई की कड़ी निंदा की है।
बयान में कहा गया है कि मीरवाइज को बिना किसी कानूनी आधार के बार-बार नजरबंद किया जा रहा है, जो उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। हुर्रियत ने इसे "अन्याय" और "तानाशाही" करार दिया है।
यह पहली बार नहीं है जब मीरवाइज उमर फारूक ने नजरबंदी का आरोप लगाया है। अनुच्छेद 370 के हटने के बाद से, वह लगातार यह कहते आ रहे हैं कि प्रशासन उन्हें लोगों से मिलने और अपनी धार्मिक जिम्मेदारियों को निभाने से रोक रहा है। हालांकि, प्रशासन ने इन दावों को बार-बार खारिज किया है और कहा है कि मीरवाइज को कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता है।
यह घटना एक बार फिर कश्मीर में स्थिति को लेकर बहस को जन्म देती है। मीरवाइज के समर्थक इसे उनकी आवाज को दबाने का प्रयास मानते हैं, जबकि प्रशासन इसे कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम मानता है।