जयराम रमेश ने मोदी सरकार पर लगाया धन के केंद्रीकरण का आरोप
धन के असमान वितरण पर चिंता
नई दिल्ली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने हाल ही में एक रिपोर्ट साझा करते हुए मोदी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि कुछ उद्योगपतियों के साथ सत्ता का गठजोड़ उन्हें और अधिक समृद्ध बना रहा है। उनका मानना है कि प्रधानमंत्री की नीतियां केवल इन उद्योगपतियों के लाभ के लिए बनाई गई हैं। भारत की अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा, MSME क्षेत्र, अत्यधिक दबाव में है, जो न केवल घरेलू नीतियों का परिणाम है, बल्कि विदेश नीति की विफलताओं का भी नतीजा है।
जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक समाचार कटिंग साझा की, जिसमें बताया गया है कि भारत के केवल 1687 लोगों के पास देश की आधी संपत्ति है। उन्होंने लिखा कि लगातार आ रही रिपोर्टें भारत में धन के केंद्रीकरण की गंभीरता को उजागर कर रही हैं। जबकि करोड़ों भारतीय अपनी दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर, केवल 1687 लोग देश की आधी दौलत के मालिक हैं।
मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण धन का इतना बड़ा केंद्रीकरण देश में गंभीर आर्थिक असमानता को जन्म दे रहा है। यह असमानता सामाजिक असुरक्षा और असंतोष को बढ़ावा दे रही है। अन्य देशों में हाल के उदाहरण दर्शाते हैं कि ऐसी आर्थिक असमानता और कमजोर लोकतांत्रिक संस्थाएं राजनीतिक अराजकता का कारण बन सकती हैं। जयराम रमेश ने चेतावनी दी कि भारत भी इसी दिशा में बढ़ रहा है।
उन्होंने आगे कहा कि सत्ता के गठजोड़ से कुछ उद्योगपति और अधिक समृद्ध हो रहे हैं। प्रधानमंत्री की नीतियां उनके उद्योगपति मित्रों के लाभ के लिए केंद्रित हैं। MSME क्षेत्र पर अभूतपूर्व दबाव है, जो घरेलू नीतियों और विदेश नीति की असफलताओं का परिणाम है। आम लोगों के लिए रोजगार के अवसर घटते जा रहे हैं, और महंगाई इतनी बढ़ गई है कि नौकरीपेशा लोगों की जेब में बचत की जगह कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। शिक्षा और स्वास्थ्य पर निवेश में कमी आ रही है, और सामाजिक सुरक्षा योजनाएं कमजोर हो रही हैं।
मनरेगा जैसी सफल योजनाएं, जिन्होंने करोड़ों लोगों को सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा प्रदान की थी, अब वेतन संकट का सामना कर रही हैं। श्रमिकों को समय पर भुगतान नहीं हो रहा है। धन का इतना केंद्रीकरण केवल आर्थिक समस्या नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र की आत्मा पर भी हमला है। जब आर्थिक शक्ति कुछ हाथों में सिमट जाती है, तो राजनीतिक निर्णय भी उन्हीं के हित में होने लगते हैं। इसके परिणामस्वरूप सामाजिक और आर्थिक असमानता बढ़ती जा रही है, जिससे करोड़ों नागरिक धीरे-धीरे लोकतंत्र और विकास की प्रक्रिया से बाहर हो रहे हैं।