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जलवायु परिवर्तन: वैज्ञानिकों ने कार्बन चक्र की नई कमजोरियों का किया खुलासा

हालिया अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के कार्बन चक्र की एक महत्वपूर्ण कमजोरी का खुलासा किया है, जो जलवायु परिवर्तन की हमारी समझ को बदल सकता है। यह अध्ययन बताता है कि बढ़ते तापमान के कारण कार्बन चक्र अचानक पलट सकता है, जिससे वैश्विक ठंड का दौर आ सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि मानवजनित सीओ₂ उत्सर्जन के कारण वर्तमान गर्मी जारी रहेगी, लेकिन लंबे समय में यह ठंड का कारण बन सकता है। जानें इस अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष और इसके संभावित प्रभाव।
 

जलवायु संकट का नया अध्ययन

जलवायु संकट: वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के प्राकृतिक कार्बन चक्र में एक महत्वपूर्ण कमजोरी का पता लगाया है, जो जलवायु परिवर्तन की हमारी समझ को पूरी तरह से बदल सकती है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, रिवरसाइड के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में यह सामने आया है कि बढ़ते तापमान के कारण यह चक्र अचानक पलट सकता है, जिससे वैश्विक गर्मी के बाद अचानक ठंड का दौर आ सकता है, यहां तक कि एक नया हिमयुग भी संभव है।


वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी का जलवायु संतुलन मुख्य रूप से चट्टानों के क्षरण पर निर्भर करता है। इस प्रक्रिया में वर्षा का पानी वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करता है और इसे सिलिकेट चट्टानों जैसे ग्रेनाइट के संपर्क में लाता है। धीरे-धीरे ये चट्टानें घुलने लगती हैं, जिससे कार्बन और कैल्शियम जैसे तत्व नदियों के माध्यम से समुद्र तक पहुंचते हैं।


समुद्र में ये तत्व शंख, प्रवाल भित्तियों और चूना पत्थर जैसी संरचनाओं का निर्माण करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि कार्बन समुद्र की तलहटी में लाखों वर्षों के लिए कैद हो जाता है, जिससे वायुमंडलीय सीओ₂ कम होता है और तापमान नियंत्रित रहता है। यह एक धीमी लेकिन प्रभावी 'थर्मोस्टेट' की तरह कार्य करता है, जो पृथ्वी को अत्यधिक गर्म या ठंडा होने से बचाता है।


अतीत के हिमयुगों का संदर्भ


हालांकि, भूवैज्ञानिक साक्ष्य बताते हैं कि अतीत में हिमयुग इतने चरम थे कि पूरी पृथ्वी बर्फ की चादर में लिपट गई थी, जिसे 'स्नोबॉल अर्थ' कहा जाता है। यह स्पष्ट है कि यह सरल नियंत्रण पूरी कहानी नहीं बताता। यूसीआर के शोधकर्ताओं ने कार्बन चक्र के उस हिस्से की खोज की है, जिसे पहले नजरअंदाज किया गया था, यानी समुद्र में कार्बन की दफन प्रक्रिया। उनके मॉडल के अनुसार, जब वायुमंडल में सीओ₂ बढ़ता है और पृथ्वी गर्म होती है, तो अधिक पोषक तत्व, विशेषकर फॉस्फोरस, भूमि से समुद्र में पहुंचते हैं। ये पोषक तत्व प्लवक की वृद्धि को बढ़ावा देते हैं, जो सीओ₂ को अवशोषित करके कार्बन को समुद्र तल पर जमा करने में मदद करते हैं।


नए शोध की जानकारी


लेकिन यहां एक ट्विस्ट है। गर्म जलवायु में शैवालों की अधिक सक्रियता से समुद्र में ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है। ऑक्सीजन की कमी फॉस्फोरस को दफन होने से रोकती है और इसे पानी में ही रिसाइकिल कर देती है। इससे एक खतरनाक फीडबैक लूप बनता है: अधिक पोषक तत्व प्लवक की संख्या बढ़ाते हैं, प्लवक का अपघटन और अधिक ऑक्सीजन हटाता है, जिससे फॉस्फोरस का पुनर्चक्रण तेज हो जाता है। परिणामस्वरूप, वायुमंडल में सीओ₂ का स्तर तेजी से गिरता है, जो गर्माहट को 'ओवरकरेक्शन' देकर वैश्विक शीतलन की ओर धकेल देता है।


गर्मी के बाद ठंड का दौर?


मानवजनित सीओ₂ उत्सर्जन के कारण वर्तमान ग्लोबल वार्मिंग अल्पकालिक रूप से जारी रहेगी, लेकिन शोधकर्ताओं का अनुमान है कि लंबे समय में यह ओवरकरेक्शन ठंड का कारण बनेगा। हालांकि, आज वायुमंडल में ऑक्सीजन की अधिक मात्रा इस फीडबैक को कमजोर करेगी, इसलिए अगला हिमयुग हल्का होगा। फिर भी, शोधकर्ताओं का कहना है कि हमें अभी गर्माहट को सीमित करने पर ध्यान देना चाहिए। पृथ्वी का ठंडा होना इतना तेज नहीं होगा कि हमारी पीढ़ी को इसका लाभ मिले।