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जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी

केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की पुष्टि की है। यह विवाद तब शुरू हुआ जब उनके आवास पर आग लगी और जली हुई नकदी बरामद हुई। जस्टिस वर्मा ने इस मामले में खुद को निर्दोष बताते हुए आरोप लगाया है कि यह उनके खिलाफ साजिश है। जानें इस मामले में क्या हुआ और जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में क्या याचिका दायर की है।
 

महाभियोग प्रस्ताव की पुष्टि

केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने रविवार, 20 जुलाई को यह जानकारी दी कि सरकार संसद के आगामी सत्र में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश करेगी। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में बताया कि इस प्रस्ताव पर 100 से अधिक सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं। रिजिजू ने कहा, "सरकार इस सत्र में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाएगी।"


महाभियोग प्रस्ताव की समयसीमा

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, सांसदों ने महाभियोग के लिए प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं। जब उनसे समयसीमा के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, "अभी समयसीमा नहीं बताई जा सकती, हम बाद में निर्णय लेंगे और आपको सूचित करेंगे।"


विवाद की शुरुआत

आग और जली हुई नकदी

जस्टिस वर्मा के खिलाफ विवाद मार्च 2025 में शुरू हुआ, जब उनके दिल्ली स्थित आवास पर आग लग गई। इस घटना के बाद, वहां से बड़ी मात्रा में जली हुई या आंशिक रूप से जली हुई नकदी बरामद की गई। इस खोज ने व्यापक अटकलों और आलोचनाओं को जन्म दिया, जिसके बाद जांच की मांग उठने लगी। जस्टिस वर्मा ने इस मामले में अपने खिलाफ साजिश का आरोप लगाया और कहा कि उन्हें झूठा फंसाया गया है।


जस्टिस वर्मा का स्थानांतरण

जांच और स्थानांतरण

इस घटना के बाद जस्टिस वर्मा को दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया। उन्हें तब से कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया है। उन्होंने न तो इस्तीफा दिया है और न ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली है। वह इस प्रक्रिया को "मूल रूप से अन्यायपूर्ण" मानते हैं। हाल ही में, जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें उनके आवास से जली हुई नकदी की कथित बरामदगी से संबंधित आंतरिक जांच रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की गई।


याचिका में उठाए गए सवाल

प्रक्रिया पर सवाल

जस्टिस वर्मा की विस्तृत याचिका में उन्होंने पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाए। उन्होंने इसे असंवैधानिक और प्रक्रियात्मक रूप से त्रुटिपूर्ण बताया। 11 वर्षों से अधिक समय तक न्यायाधीश के रूप में सेवा देने वाले जस्टिस वर्मा ने तर्क किया कि जांच बिना किसी औपचारिक शिकायत के शुरू की गई थी।


प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन

न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन

जस्टिस वर्मा ने आरोप लगाया कि आंतरिक समिति ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया। उन्होंने कहा कि उन्हें भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया। इसके अलावा, याचिका में तर्क किया गया कि जांच में "उनके खिलाफ कोई विशिष्ट या संभावित मामला स्पष्ट रूप से सामने नहीं रखा गया" और न ही महत्वपूर्ण तथ्यों की जांच की गई।


मीडिया में लीक और प्रतिष्ठा को नुकसान

प्रतिष्ठा को नुकसान

जस्टिस वर्मा की याचिका में यह भी बताया गया कि अंतिम रिपोर्ट को उनके औपचारिक जवाब से पहले ही मीडिया में लीक कर दिया गया, जिससे उनकी प्रतिष्ठा को "अपूरणीय क्षति" पहुंची।


सुप्रीम कोर्ट समिति का नया खुलासा

गवाहों का खुलासा

एक अन्य घटनाक्रम में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति ने पहली बार 10 गवाहों के नामों का खुलासा किया, जिन्होंने जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास के स्टोर रूम में बड़ी मात्रा में नकदी देखी थी।