जातियों और वर्ण व्यवस्था: एक नई दृष्टि
जातियों को वर्ण से जोड़ना: एक गलतफहमी
जातियों को वर्ण व्यवस्था से जोड़ना एक गंभीर गलती है। श्रीभगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया है, ‘चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश:’ (4:13), जिसका अर्थ है कि मैंने गुण और कार्य के आधार पर चार वर्णों का निर्माण किया है। यह सच है कि औपनिवेशिक और वामपंथी समूह जानबूझकर इस तथ्य को नजरअंदाज करते हैं और सामाजिक न्याय के नाम पर समस्या को और जटिल बनाते हैं।
हाल ही में कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने योजनाबद्ध मतांतरण को हिंदू समाज की जाति व्यवस्था और असमानताओं से जोड़कर उसका समर्थन किया। यह कोई आकस्मिक बयान नहीं है, बल्कि यह हिंदू संस्कृति के खिलाफ एक निरंतर चलने वाले षड्यंत्र का हिस्सा है।
इसका मुख्य उद्देश्य हिंदू समाज को जातियों के आधार पर विभाजित करना और मुसलमानों को इस्लाम के नाम पर संगठित रखना है। इस एजेंडे के तहत भारत की सनातन संस्कृति को ‘हीन’ बताने और हिंदू विरोधी विचारधारा को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाता है।
जाति जनगणना पर बात करते हुए, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि यदि हिंदू समाज में समानता होती, तो मतांतरण की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन क्या यह सच नहीं है कि भारतीय उपमहाद्वीप में लगभग 60 करोड़ मुसलमानों के पूर्वज हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख थे? क्या यह भी सच नहीं है कि अधिकांश मुसलमानों ने मतांतरण तलवार और धोखे के माध्यम से स्वीकार किया?
क्या यह सच नहीं है कि सिख परंपरा के महान गुरु— गुरु अर्जन देवजी और गुरु तेग बहादुर जी को इस्लाम नहीं अपनाने पर निर्दयता से मार दिया गया था? इसी तरह, 16वीं शताब्दी में कैथोलिक चर्च ने स्थानीय हिंदू और मुस्लिमों का शोषण किया।
हाल ही में अलवर में ईसाई मिशनरी हॉस्टल में बच्चों के जबरन मतांतरण का मामला सामने आया है। बच्चों ने बताया कि उन्हें हिंदू देवी-देवताओं को मानने से रोका जाता था। क्या यह सच नहीं है कि पंजाब में सिख समाज भी मतांतरण का शिकार है?
यह सही है कि हिंदू समाज में अस्पृश्यता रही है, लेकिन इसे मिटाने के लिए समाज के भीतर से आवाजें उठी हैं। स्वतंत्र भारत में आरक्षण व्यवस्था लागू की गई है और छुआछूत का कोई समर्थन नहीं करता।
क्या इस्लाम और ईसाइयत इससे मुक्त हैं? कुछ साल पहले ‘कैथलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया’ ने स्वीकार किया था कि चर्च में मतांतरित दलित भी ‘अस्पृश्यता’ का शिकार हैं।
कर्नाटक सरकार के मंत्री प्रियांक खड़गे ने कहा कि सिख, जैन, बौद्ध और लिंगायत धर्म भारत में इसलिए पैदा हुए क्योंकि हिंदू धर्म ने उन्हें सम्मान नहीं दिया। भारतीय संस्कृति में संवाद और असहमति की परंपरा रही है।
जातियों को वर्ण से जोड़ना एक गंभीर गलती है। श्रीभगवद्गीता में वर्ण व्यवस्था को गुण और कार्य के आधार पर परिभाषित किया गया है। औपनिवेशिक और वामपंथी समूह इस तथ्य को नजरअंदाज करते हैं और अपने भारत विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं।