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जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा ने दिया इस्तीफा, ट्रंप के टैरिफ में कमी का असर

जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा ने हाल ही में अपने पद से इस्तीफा देने की घोषणा की है, जो कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा टैरिफ में कमी के बाद आया। इशिबा की पार्टी को हाल के चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था, जिसके चलते उन पर इस्तीफे का दबाव बढ़ा। नए प्रधानमंत्री के लिए संभावित उम्मीदवारों की चर्चा भी शुरू हो गई है। जानें इस राजनीतिक बदलाव के पीछे की वजहें और नए नेता की संभावनाएं।
 

जापान में राजनीतिक बदलाव

जापान में प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा ने अपने पद से इस्तीफा देने का निर्णय लिया है, जो कि एक अप्रत्याशित घटना है। यह इस्तीफा उस समय आया जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने जापान को टैरिफ में राहत दी। पहले जापान पर 25 प्रतिशत का टैरिफ लगाया गया था, लेकिन अब इसे घटाकर 15 प्रतिशत कर दिया गया है। इस बदलाव के बाद इशिबा ने इस्तीफे का ऐलान किया।


इशिबा की पार्टी को हाल ही में हुए संसद चुनाव में भारी हार का सामना करना पड़ा था, जिसके कारण उन पर इस्तीफा देने का दबाव बढ़ गया था। 65 वर्षीय इशिबा, जो खुद को सेंट्रिस्ट मानते हैं, ने स्पष्ट किया कि वे प्रधानमंत्री और सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) दोनों पदों से हट रहे हैं और अगले नेतृत्व चुनाव में भी उम्मीदवार नहीं बनेंगे।


टैरिफ वार्ता का प्रभाव

प्रेस कॉन्फ्रेंस में इशिबा ने कहा कि उन्होंने हार की जिम्मेदारी लेने का मन बना लिया था, लेकिन वे चाहते थे कि अमेरिका के साथ टैरिफ वार्ता में कुछ प्रगति हो। ट्रंप ने जापानी उत्पादों पर टैरिफ को 25% से घटाकर 15% करने का आदेश दिया। इशिबा ने कहा कि अब समय आ गया है कि वे रास्ता साफ करें।


उन्होंने यह भी बताया कि पार्टी के भीतर सोमवार को यह तय होना था कि नेतृत्व चुनाव जल्दी कराए जाएं या नहीं। यदि प्रस्ताव पास होता, तो यह उनके खिलाफ नो कॉन्फिडेंस जैसा होता।


जापान का नया प्रधानमंत्री कौन होगा?

इशिबा तब तक प्रधानमंत्री बने रहेंगे जब तक पार्टी नया नेता नहीं चुन लेती। नया नेता अक्टूबर में चुना जा सकता है। संभावित उत्तराधिकारियों में कृषि मंत्री शिंजिरो कोइजुमी, पूर्व आर्थिक सुरक्षा मंत्री साने ताकाइची और पूर्व प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के करीबी सहयोगी योशिमासा हायाशी का नाम शामिल है। विशेषज्ञों का मानना है कि नए प्रधानमंत्री को संसद के दोनों सदनों में बहुमत नहीं मिलेगा, इसलिए उन्हें विपक्षी पार्टियों का सहयोग लेना होगा।