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झारखंड में गोबर से बने दीये और मूर्तियों की अनोखी पहल

झारखंड के कोडरमा जिले में गोबर से बने दीये और गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों की अनोखी पहल चर्चा का विषय बन गई है। ग्रामीण महिलाएं गोबर क्राफ्ट के माध्यम से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही हैं, साथ ही पर्यावरण और गौसंरक्षण में भी योगदान दे रही हैं। इस पहल ने न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त किया है, बल्कि दीपावली मेले में भी सराहना प्राप्त की है। जानें कैसे यह पहल विकसित भारत के संकल्प को साकार कर रही है।
 

गोबर क्राफ्ट से आत्मनिर्भरता की ओर

दीपावली के अवसर पर झारखंड के कोडरमा जिले के सतगावां प्रखंड में स्थित पहलवान आश्रम में गोबर से निर्मित दीये और गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां चर्चा का विषय बन गई हैं। जबकि मिट्टी के दीये और इलेक्ट्रॉनिक दीपक बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं, गाय के गोबर से बने ये पर्यावरण अनुकूल उत्पाद कम ही देखने को मिलते हैं। यहां की ग्रामीण महिलाएं गोबर क्राफ्ट के माध्यम से न केवल आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही हैं, बल्कि पर्यावरण और गौसंरक्षण में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।


दीपावली और छठ पर्व के लिए तैयारियां

पहलवान आश्रम में दीपावली और छठ पर्व के लिए गोबर से 15 प्रकार के उत्पाद बनाए जा रहे हैं। इनमें दीये, गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां, द्वार झालर, शुभ-लाभ, स्वास्तिक चिन्ह, और 'शुभ दीपावली' तथा 'जय छठी मैया' जैसे नेम प्लेट शामिल हैं।


पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद

गोबर और लकड़ी के बुरादे से बने ये उत्पाद धूप में सुखाए जाते हैं और आकर्षक रंगों से सजाए जाते हैं, जो देखने में बेहद सुंदर लगते हैं। ये न केवल पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं, बल्कि उपयोग के बाद मिट्टी में मिलकर खाद का रूप ले लेते हैं, जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता।


महिलाओं को सशक्त बनाने की पहल

राष्ट्रीय झारखंड सेवा संस्थान के कोषाध्यक्ष विजय कुमार, नीतू कुमारी और ईशान चंद महतो ने गुजरात के भुज से प्रशिक्षण लेकर गांव की महिलाओं को गोबर क्राफ्ट की तकनीक सिखाई। इस प्रशिक्षण ने ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।


दीपावली मेले में सराहना

संस्थान के सचिव मनोज दांगी ने बताया कि धनतेरस से लेकर दीपावली तक की पूरी तैयारी की गई है। हाल ही में रांची में आयोजित दीपावली मेले में इन उत्पादों को विशेष स्थान मिला, जहां कई वरिष्ठ अधिकारियों ने इनकी सराहना की और खरीदारी भी की।


गौसंरक्षण को बढ़ावा

मनोज दांगी ने बताया कि गोबर से बने ये उत्पाद रेडिएशन से बचाव में सहायक हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। साथ ही, दूध न देने वाली वृद्ध गायों के गोबर का उपयोग कर गौसंरक्षण को भी बढ़ावा मिल रहा है।


महिला सशक्तिकरण का केंद्र

सतगावां प्रखंड, जो पहले नक्सल प्रभावित क्षेत्र के रूप में जाना जाता था, अब गोबर क्राफ्ट के माध्यम से महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण और गौसंरक्षण का केंद्र बन चुका है।


एक सशक्त कदम

यह पहल विकसित भारत के संकल्प को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो ग्रामीण महिलाओं के जीवन में उम्मीद की नई किरण ला रही है।