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ठाकरे बंधुओं का हिंदी विरोध: महाराष्ट्र की राजनीति में नया मोड़

महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे बंधुओं ने हिंदी विरोध के मुद्दे पर एकजुटता दिखाई है। हाल ही में हुई हिंसा और भाजपा सांसद की चुनौती के बाद, उद्धव और राज ठाकरे ने आगामी नगर निकाय चुनावों में एकजुट होकर लड़ने का संकेत दिया है। इस विवाद के पीछे की राजनीतिक रणनीतियों और भाषाई राजनीति के प्रभाव को समझें। क्या यह हिंदी का विरोध केवल राजनीतिक लाभ के लिए है? जानें इस लेख में।
 

ठाकरे बंधुओं की एकजुटता

महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए उद्धव और राज ठाकरे ने हिंदी विरोध के मुद्दे पर एकजुटता दिखाई है। हाल ही में, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कुछ कार्यकर्ताओं ने हिंदी भाषी लोगों के साथ हिंसा की, जिसके बाद भाजपा सांसद निशीकांत दुबे ने ठाकरे बंधुओं को चुनौती दी कि वे मुंबई से बाहर आकर बिहार की स्थिति का अनुभव करें। इस बयान के बाद, शिवसेना और मनसे के समर्थक सड़कों पर उतर आए।


हिंदी भाषा का विवाद

महाराष्ट्र सरकार ने स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य करने का आदेश वापस ले लिया था, जिसके बाद ठाकरे बंधुओं ने विजय रैली का आयोजन किया। उद्धव ठाकरे ने इस रैली में आगामी नगर निकाय चुनावों में एकजुट होकर लड़ने का संकेत दिया। उन्होंने कहा कि हम मिलकर मुंबई महानगरपालिका और महाराष्ट्र में सत्ता हासिल करेंगे।


राज ठाकरे की प्रतिक्रिया

राज ठाकरे ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस पर चुटकी लेते हुए कहा कि उन्होंने दोनों चचेरे भाइयों को एक साथ लाकर वह काम किया है जो पहले नहीं हो सका। राज ने यह भी कहा कि भाषा विवाद के बाद सरकार का अगला कदम जाति के आधार पर लोगों को बांटना होगा।


भाषाई राजनीति का प्रभाव

भाजपा पर आरोप लगाते हुए राज ठाकरे ने कहा कि उनकी रणनीति 'फूट डालो और राज करो' है। उद्धव ने कहा कि वे सरकार को हिंदी थोपने नहीं देंगे और यह भी कि किसी को भी मराठी और महाराष्ट्र पर बुरी नजर नहीं डालनी चाहिए।


संघ का दृष्टिकोण

संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि सभी भारतीय भाषाएं राष्ट्रीय हैं और प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि स्वतंत्रता के बाद भी राजनीतिक दल अंग्रेजों की नीति पर चल रहे हैं।


हिंदी का महत्व

हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए। अंग्रेजी को प्राथमिकता देने वाले यह भूल रहे हैं कि हिंदी हमारी संस्कृति और धरोहर का हिस्सा है। ठाकरे बंधुओं का हिंदी विरोध केवल राजनीतिक लाभ के लिए है।


निष्कर्ष

महाराष्ट्र सरकार ने अपना विवादास्पद आदेश वापस ले लिया है, और अब विवाद समाप्त होना चाहिए।


मुख्य संपादक का संदेश

-इरविन खन्ना, मुख्य संपादक


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