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डिजिटल सहारे: बच्चों में अकेलापन और असुरक्षा का कारण

चैटजीपीटी और अन्य एआई चैटबॉट्स बच्चों के लिए भावनात्मक सहारा बनते जा रहे हैं, लेकिन इसके गंभीर मानसिक स्वास्थ्य प्रभाव हो सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह डिजिटल सहारा बच्चों में अकेलापन और असुरक्षा की भावना को बढ़ा रहा है। माता-पिता और बच्चों के बीच संवाद की कमी के कारण बच्चे सोशल मीडिया पर अपनी वैल्यू को लाइक्स से मापने लगे हैं। जानें इस विषय पर और क्या कहते हैं विशेषज्ञ और इसके समाधान क्या हो सकते हैं।
 

बच्चों में अकेलापन और असुरक्षा का बढ़ता खतरा


ChatGPT: बच्चों के लिए भावनात्मक सहारा बनते एआई चैटबॉट्स
विशेषज्ञों का मानना है कि चैटजीपीटी और अन्य एआई चैटबॉट्स युवाओं के लिए एक भावनात्मक सहारा बनते जा रहे हैं, लेकिन यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकता है। इस डिजिटल सहारे की लत बच्चों में अकेलापन और असुरक्षा की भावना को बढ़ावा दे रही है, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।


आईटीएल पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल सुधा आचार्य ने बताया कि आजकल बच्चे अपने स्मार्टफोन को सबसे सुरक्षित स्थान मानने लगे हैं। जब उन्हें कोई सुनने वाला नहीं मिलता, तो वे चैटजीपीटी पर अपनी भावनाएं व्यक्त करने लगते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यह एक ऐसा स्थान है जो हमेशा सकारात्मक प्रतिक्रिया देता है।


बातचीत की कमी का प्रभाव

चैटजीपीटी जैसे एआई चैटबॉट्स अक्सर बच्चों को यह कहते हैं कि 'शांत हो जाइए, हम मिलकर हल निकालेंगे', जिससे बच्चों को वैलिडेशन और भावनात्मक समर्थन का भ्रम होता है। आचार्य का मानना है कि यह व्यवहार माता-पिता और बच्चों के बीच संवाद की कमी का परिणाम है।


सोशल मीडिया पर मान्यता की खोज

उन्होंने कहा कि बच्चों के पास अब असली दोस्त कम हैं और वे सोशल मीडिया पर लाइक्स की संख्या से अपनी वैल्यू तय करने लगे हैं। यदि किसी तस्वीर पर 100 लाइक नहीं मिलते, तो वे खुद को अस्वीकार महसूस करते हैं।


नैतिक समझ की कमी

आचार्य ने बताया कि उनके स्कूल में डिजिटल सिटीजनशिप स्किल्स की कक्षाएं 6वीं कक्षा से शुरू की गई हैं, क्योंकि 9-10 साल के बच्चों के पास अब स्मार्टफोन हैं, लेकिन उनमें नैतिक समझ की कमी है।


युवाओं का सामाजिक कौशल प्रभावित

आरएमएल अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. लोकेश सिंह शेखावत ने कहा कि जब कोई नकारात्मक सोच या भावनात्मक असंतुलन एआई के साथ साझा किया जाता है, तो वह उसे ही वैलिडेट कर देता है। इससे भ्रम पैदा होता है और गलत सोच गहराई से बैठ जाती है। उन्होंने इसे अटेंशन बायस और 'मेमोरी बायस' की स्थिति बताया और चेतावनी दी कि लगातार ऐसा होने से युवा सामाजिक कौशल खो सकते हैं।


भावनात्मक असंतुलन का अनुभव

कक्षा 11 की छात्रा आयुषी ने बताया कि उसने कई बार अपनी व्यक्तिगत बातें चैटबॉट्स से साझा की हैं क्योंकि उसे जज किए जाने का डर था। वहीं, 15 वर्षीय गौरांश ने कहा कि नैतिक समझ की कमी के कारण बात करने के बाद उसे चिड़चिड़ापन और गुस्सा महसूस हुआ।