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तमिलनाडु की DMK ने मतदाता सूची पुनरीक्षण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी

तमिलनाडु की द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (DMK) ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। पार्टी का आरोप है कि निर्वाचन आयोग ने उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना लाखों मतदाताओं के नाम हटा दिए हैं, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल उठते हैं। इस मामले में सुनवाई के दौरान विपक्षी दलों ने भी चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। अब सभी की नजर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर है।
 

नई दिल्ली में मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण शुरू


नई दिल्ली: मंगलवार से देश के 12 राज्यों में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) आरंभ हो रहा है। इस प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य आगामी चुनावों के लिए मतदाता सूची को अद्यतन करना है। हालांकि, इस बीच, तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (DMK) ने इस प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।


मतदाताओं के नाम हटाने का आरोप

डीएमके ने आरोप लगाया है कि निर्वाचन आयोग ने उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना लाखों मतदाताओं के नाम सूची से हटा दिए हैं। पार्टी का कहना है कि इससे कई असली मतदाता अपने मताधिकार से वंचित हो गए हैं। इस संबंध में डीएमके के संगठन सचिव आर. एस. भारती ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है और अदालत से शीघ्र सुनवाई की मांग की है।


चुनाव आयोग पर नियमों की अनदेखी का आरोप

पार्टी ने अपनी याचिका में कहा है कि संविधान ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट प्रक्रिया निर्धारित की है, लेकिन चुनाव आयोग ने इसका पालन नहीं किया। डीएमके का कहना है कि आयोग की जल्दबाजी और लापरवाही के कारण वास्तविक मतदाताओं के नाम गलती से हटा दिए गए हैं, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल उठते हैं।


SIR के लिए समय की कमी का आरोप

याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के लिए बहुत कम समय निर्धारित किया और आवश्यक दस्तावेजों की जांच में कई कमियां थीं। इससे कई योग्य मतदाताओं के नाम भी हटा दिए गए। पार्टी का कहना है कि यह स्थिति मतदाताओं के अधिकारों का उल्लंघन करती है और चुनाव की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकती है।


विपक्ष का चुनाव आयोग के खिलाफ विरोध

बिहार से जुड़े इसी तरह के एसआईआर मामलों पर भी मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग के इस कदम पर सवाल उठाए हैं, उनका कहना है कि इतने कम समय में लाखों रिकॉर्ड की जांच करना संभव नहीं है, जिससे पारदर्शिता और निष्पक्षता पर संदेह उत्पन्न होता है।


कुल मिलाकर, डीएमके की याचिका ने इस प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है और अब सभी की नजर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर है।