तुर्किये का कश्मीर मुद्दा: भारत की स्पष्ट नीति और कूटनीतिक जवाब
तुर्किये के राष्ट्रपति एर्दोआन द्वारा कश्मीर मुद्दे को उठाने के प्रयासों पर भारत की स्पष्ट नीति और कूटनीतिक प्रतिक्रिया का विश्लेषण किया गया है। भारत ने हमेशा कश्मीर को अपना अभिन्न हिस्सा माना है और किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को अस्वीकार किया है। तुर्किये की पाकिस्तान-परस्त नीति और घरेलू समस्याओं के बीच, भारत के लिए यह एक अवसर है अपनी कूटनीति और सामरिक शक्ति को प्रदर्शित करने का।
Sep 24, 2025, 11:37 IST
संयुक्त राष्ट्र महासभा का दुरुपयोग
संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) को वैश्विक समस्याओं पर चर्चा और सहयोग का मंच होना चाहिए, लेकिन तुर्किये के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोआन बार-बार इसका दुरुपयोग कर कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने का प्रयास करते हैं। इस वर्ष भी उन्होंने अपने भाषण में कश्मीर का जिक्र करते हुए संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के आधार पर समाधान की बात की और भारत-पाकिस्तान के बीच 'वार्ता' का सुझाव दिया। हालांकि, यह बयान सतही तौर पर शांति की वकालत करता है, लेकिन वास्तव में यह पाकिस्तान के पक्ष में और भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का प्रयास है।
भारत का स्पष्ट दृष्टिकोण
भारत का दृष्टिकोण हमेशा स्पष्ट और अडिग रहा है—कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और रहेगा। भारत ने कभी भी किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं किया। यदि पाकिस्तान से बातचीत होती है, तो वह केवल इस विषय पर होगी कि पाकिस्तान अपने कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (PoJK) को कब लौटाएगा। इसके अलावा किसी भी प्रकार की वार्ता तभी संभव होगी जब पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को समाप्त करेगा।
तुर्किये की कुत्सित मानसिकता
तुर्किये का कश्मीर मुद्दा उठाना उसकी कुत्सित मानसिकता को दर्शाता है। यह वही तुर्किये है, जिसने फरवरी 2023 में आए विनाशकारी भूकंप के दौरान भारत की मानवीय सहायता 'ऑपरेशन दोस्त' की सराहना करने के बजाय पाकिस्तान का पक्ष लिया। भारत ने सबसे पहले राहत टीम और चिकित्सा सहायता भेजी थी, लेकिन तुर्किये ने इसका सम्मान नहीं किया। इसके विपरीत, वह पाकिस्तान के आतंकी ढांचे को बढ़ावा देता रहा है।
ऑपरेशन सिंदूर का उदाहरण
ऑपरेशन सिंदूर इसका हालिया उदाहरण है। मई 2025 में पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान गई। इसके जवाब में भारत ने पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर सटीक सैन्य कार्रवाई की। इन अभियानों के दौरान पाकिस्तान को तुर्किये से ड्रोन सहायता मिली, जिसे भारतीय सुरक्षा बलों ने मार गिराया। यह घटना केवल सैन्य क्षमता का प्रदर्शन नहीं थी, बल्कि तुर्किये को स्पष्ट संदेश था कि भारत आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले तत्वों को बख्शेगा नहीं।
तुर्किये-पाकिस्तान की दोस्ती का प्रभाव
अब सवाल यह है कि तुर्किये और पाकिस्तान की दोस्ती आगे क्या परिणाम दे सकती है? तुर्किये लंबे समय से पाकिस्तान का रणनीतिक साझीदार रहा है। रक्षा सहयोग, ड्रोन तकनीक और इस्लामी उम्माह की राजनीति में दोनों की निकटता स्पष्ट है। पाकिस्तान पहले ही चीन के साथ अपनी गलबहियों से भारत के लिए चुनौती बना हुआ है। यदि तुर्किये का सैन्य सहयोग बढ़ता है, तो यह दक्षिण एशिया में सामरिक असंतुलन का कारण बन सकता है।
भारत की रणनीतिक तैयारी
हालांकि, भारत की रणनीतिक तैयारी, कूटनीतिक सक्रियता और अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता इस खतरे को संतुलित करती है। भारत ने कई बार दिखाया है कि वह किसी भी प्रत्यक्ष खतरे का जवाब देने में सक्षम है। चाहे 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक हो, 2019 की बालाकोट एयरस्ट्राइक या 2025 का ऑपरेशन सिंदूर हो, भारत ने स्पष्ट किया है कि आतंकवाद का जवाब केवल शब्दों से नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई से दिया जाएगा।
कूटनीतिक स्तर पर भारत की प्रतिक्रिया
कूटनीतिक स्तर पर भी भारत ने तुर्किये की बयानबाजी का हर बार करारा जवाब दिया है। भारतीय प्रतिनिधियों ने संयुक्त राष्ट्र मंच पर स्पष्ट किया है कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है और किसी भी विदेशी हस्तक्षेप का कोई औचित्य नहीं है। यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय तुर्किये की बयानबाजी को गंभीरता से नहीं लेता। अधिकांश देश भारत की संवैधानिक स्थिति और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को मान्यता देते हैं।
तुर्किये और पाकिस्तान की घरेलू समस्याएँ
इसके अतिरिक्त, तुर्किये और पाकिस्तान की दोस्ती का दूसरा पहलू यह है कि दोनों देश अपनी-अपनी घरेलू समस्याओं से जूझ रहे हैं। पाकिस्तान आर्थिक दिवालियापन की कगार पर है और उसकी राजनीति संकट में है। वहीं, तुर्किये की अर्थव्यवस्था भी कमजोर हो रही है और एर्दोआन घरेलू असंतोष का सामना कर रहे हैं। ऐसे में कश्मीर मुद्दे को उठाना उनके लिए घरेलू राजनीति में अपनी छवि सुधारने का साधन हो सकता है। लेकिन यह नीति अल्पकालिक है और दीर्घकाल में तुर्किये की विश्वसनीयता को कमजोर करती है।
भारत के लिए अवसर
बहरहाल, तुर्किये का बार-बार कश्मीर का मुद्दा उठाना उसकी पाकिस्तान-परस्त नीति और राजनीतिक विवशताओं का परिणाम है। लेकिन भारत के लिए यह किसी चुनौती से अधिक अवसर है। यह अपने कड़े रुख और स्पष्ट नीति के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को दिखाने का अवसर है कि भारत आतंकवाद और तीसरे देश के हस्तक्षेप के खिलाफ जीरो टॉलरेंस रखता है। पाकिस्तान और तुर्किये की यह दोस्ती चाहे जितनी 'कुत्सित मानसिकता' से प्रेरित हो, भारत की कूटनीति और सामरिक शक्ति उसे हर बार मात देने के लिए पर्याप्त है। जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा था, है और हमेशा रहेगा—इस सच्चाई को न तो तुर्किये बदल सकता है, न पाकिस्तान।