दवा माफिया का बढ़ता प्रभाव: स्वास्थ्य सेवाओं में भ्रष्टाचार का खुलासा
दवा माफिया का गहरा जाल
लखनऊ। भारत में दवा माफियाओं का नेटवर्क तेजी से फैलता जा रहा है। स्वास्थ्य सेवाओं का संचालन अब इन माफियाओं के इशारों पर हो रहा है। दवा माफिया यह तय करते हैं कि कौन अधिकारी कहां तैनात होगा और कौन सी दवा सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध होगी। इस स्थिति में दवा माफियाओं और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के बीच एक गहरा गठजोड़ बन चुका है, जिससे यह सिंडिकेट लगातार मजबूत हो रहा है और दोनों पक्ष मालामाल होते जा रहे हैं।
वास्तव में, 20 पैसे की लागत से तैयार की गई दवाओं की अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) भी दवा माफिया द्वारा निर्धारित की जाती है। ये दवाएं तीन से चार रुपये की MRP पर बेची जाती हैं, जबकि सरकारी अस्पतालों और मेडिकल स्टोरों पर इन्हें डेढ़ से दो रुपये में सप्लाई किया जाता है। अधिकारी MRP से कम कीमत पर दवा खरीदने का दावा कर सरकार को गुमराह करते हैं, लेकिन इस खेल में दवा माफिया और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी दोनों ही लाभ कमा रहे हैं। इस बीच, आम लोग इनके जाल में फंसकर अपनी सारी संपत्ति खो रहे हैं और इलाज कराने में असमर्थ हो रहे हैं।
सरकार गरीबों के इलाज के लिए कई दावे करती है, लेकिन दवा माफिया और स्वास्थ्य अधिकारियों का यह गठजोड़ गरीबों की स्थिति को और भी खराब कर रहा है। यह केवल गरीबों तक सीमित नहीं है, बल्कि हर वह परिवार जो किसी न किसी सदस्य का इलाज करा रहा है, इस व्यवस्था का शिकार हो रहा है।
इसी तरह, मरीजों की जांच में भी बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी की जा रही है। उत्तर प्रदेश सहित देश के कई हिस्सों में सक्रिय पीओसीटी साइंस हाउस प्राइवेट लिमिटेड (POCT) कंपनी भी इस खेल में शामिल है। इस कंपनी पर गंभीर आरोप लग चुके हैं, फिर भी इसका काम देशभर में जारी है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि स्वास्थ्य अधिकारियों और दवा माफियाओं का यह गठजोड़ कैसे समाप्त होगा?
सरकार की अनदेखी
ऐसा नहीं है कि सरकार दवा माफियाओं और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के इस गठजोड़ से अनजान है। सरकार को सब कुछ पता होने के बावजूद, इस गठजोड़ को तोड़ने में वह असफल रही है। इस स्थिति में यह सवाल उठता है कि आखिर सरकार इस सिंडिकेट को समाप्त करने का प्रयास क्यों नहीं करती। क्या आम आदमी को इनके जाल में फंसकर अपनी संपत्ति खोते रहना चाहिए? या फिर सरकार इस पर कुछ कदम उठाएगी?