दशहरे पर शस्त्र पूजा का महत्व और विधि
दशहरे पर शस्त्र पूजा का महत्व
दशहरे के अवसर पर हिन्दू धर्म में शस्त्रों की पूजा का विशेष महत्व है। विजयदशमी, जो अश्विन मास की दशमी को मनाई जाती है, के एक दिन पूर्व अस्त्र-शस्त्र की पूजा करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। नवरात्रि के नौ दिनों की शक्ति उपासना के बाद, लोग अपने अस्त्रों की पूजा करते हैं, जिससे जीवन के हर क्षेत्र में विजय की कामना की जाती है। रावण दहन के साथ-साथ, दशमी पर काली पूजा और अस्त्रों की पूजा को भी मान्यता प्राप्त है।
आयुध पूजा का धार्मिक महत्व
आयुध पूजा है मां दुर्गा का अभिन्न अंग
पौराणिक कथाओं के अनुसार, विजयदशमी के दिन मां दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का वध किया था। यह मान्यता है कि मां ने अपने अस्त्रों के माध्यम से ही महिषासुर का नाश किया। इसलिए, दशहरे से पहले अस्त्रों की पूजा करना शुभ माना जाता है। इस दिन आप अपने घर के उपकरणों, किताबों और हथियारों की पूजा कर सकते हैं।
आयुध पूजा का महत्व हमारे जीवन में
हमारे जीवन में है इनकी अहम भूमिका
इन अस्त्रों और उपकरणों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। इनके बिना हमारे कार्य अधूरे रह जाते हैं। नवरात्र के अंतिम दिन, सभी अस्त्रों को धन्यवाद देते हुए उनकी पूजा की जाती है। यह मान्यता है कि इस दिन शस्त्रों की पूजा से घर में समृद्धि आती है। देश के कई हिस्सों में अस्त्र पूजा का आयोजन धूमधाम से किया जाता है।
वाहनों की पूजा का महत्व
अपनी गाड़ी की भी कर सकते हैं पूजा
आयुध पूजा में आप अपने घर के वाहनों की भी पूजा कर सकते हैं। इसके अलावा, जो भी उपकरण आपके लिए सहायक होते हैं, उनकी पूजा भी की जा सकती है। दक्षिण भारत में इस पूजा को विशेष धूमधाम से मनाया जाता है।
आयुध पूजा के दौरान सावधानियां
आयुध पूजा में बरतें सावधानियां
आयुध पूजा करते समय कुछ सावधानियों का ध्यान रखना आवश्यक है, क्योंकि हथियारों के प्रति लापरवाही खतरनाक हो सकती है।
- घर में रखे अस्त्र-शस्त्र को बच्चों की पहुंच से दूर रखें।
- चाकू या धारदार हथियार की पूजा करते समय सावधानी बरतें, क्योंकि इससे चोट लग सकती है।
- पिस्टल की सफाई करते समय सभी गोलियां निकाल दें, अन्यथा पूजा के समय सावधानी बरतें।
- बच्चों को पूजा स्थल से दूर रखें।