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दिल्ली में कृत्रिम वर्षा के लिए ट्रायल की तैयारी

दिल्ली में प्रदूषण की गंभीर समस्या से निपटने के लिए सरकार ने कृत्रिम वर्षा के ट्रायल की योजना बनाई है। आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों द्वारा तैयार की गई इस प्रक्रिया में पांच ट्रायल किए जाएंगे, जिनमें एयरक्राफ्ट से विशेष रसायनों का छिड़काव किया जाएगा। जानें इस प्रक्रिया के बारे में और इसके लिए आवश्यक मौसम की स्थिति क्या होगी।
 

दिल्ली में कृत्रिम वर्षा का परीक्षण

दिल्ली में कृत्रिम वर्षा का परीक्षण: पिछले कुछ वर्षों से, दिल्ली प्रदूषण के मामले में गंभीर स्थिति में है। यहां के वायु प्रदूषण के कारण लोगों की जीवन प्रत्याशा में कमी आ रही है। इस समस्या से निपटने के लिए, दिल्ली सरकार ने आईआईटी कानपुर के साथ मिलकर कृत्रिम वर्षा की योजना बनाई है। आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों ने इस परियोजना पर काम पूरा कर लिया है। भारतीय मौसम विभाग ने दिल्ली के पहले क्लाउड सीडिंग पायलट प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी है। जैसे ही उपयुक्त बादल बनेंगे, इस परीक्षण की शुरुआत की जाएगी, जो दिल्ली के बाहरी और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में किया जाएगा।


पांच ट्रायल का आयोजन

पांच ट्रायल का आयोजन


दिल्ली में कृत्रिम वर्षा के लिए कुल पांच ट्रायल किए जाएंगे। प्रत्येक दिन एक ट्रायल आयोजित होगा, जिसमें एयरक्राफ्ट से बादलों में विशेष रसायनों का छिड़काव किया जाएगा। यह प्रक्रिया लगभग 1 से 1.5 घंटे तक चलेगी। ट्रायल एक सप्ताह के भीतर या 1-2 दिन के अंतराल पर हो सकते हैं, और यह बादलों की उपलब्धता पर निर्भर करेगा। एक बार में लगभग 100 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में वर्षा होगी।


क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया

क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया


क्लाउड सीडिंग, जिसे कृत्रिम वर्षा भी कहा जाता है, एक वैज्ञानिक तकनीक है जिसका उपयोग मौसम को बदलने के लिए किया जाता है। इसमें बादलों में विशेष रसायनों का छिड़काव किया जाता है ताकि वर्षा की मात्रा या प्रकार को बदला जा सके। इस प्रक्रिया में सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस या साधारण नमक का उपयोग किया जाता है, जो बादलों को बरसने के लिए प्रेरित करता है। यह तकनीक हवाई अड्डों और अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर कोहरा हटाने के लिए भी उपयोग की जाती है।


अनुकूल मौसम की आवश्यकता

अनुकूल मौसम की आवश्यकता


क्लाउड सीडिंग के लिए हवा की गति और दिशा अनुकूल होनी चाहिए। इसके लिए आसमान में लगभग 40% बादल होना आवश्यक है, जिसमें थोड़ा पानी भी होना चाहिए। यदि ये शर्तें पूरी नहीं होती हैं, तो ट्रायल असफल हो सकता है या अत्यधिक वर्षा हो सकती है।


ट्रायल की लागत

ट्रायल की लागत


सूत्रों के अनुसार, एक क्लाउड सीडिंग ट्रायल की लागत लगभग 1.5 करोड़ रुपये होगी। यदि इस परीक्षण से प्रदूषण में कमी आती है, तो सरकार भविष्य की योजनाओं पर विचार करेगी।