दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए क्लाउड सीडिंग की पहल
दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या
हर वर्ष दिवाली के बाद, दिल्ली और एनसीआर का वातावरण धुएं और धुंध से भर जाता है। ठंड के मौसम में नमी की कमी और बारिश की अनुपस्थिति वायु प्रदूषण को और बढ़ा देती है। इस बार, सरकार ने इस स्थायी समस्या का समाधान करने के लिए एक नई और वैज्ञानिक पहल की योजना बनाई है, जिसे क्लाउड सीडिंग या कृत्रिम वर्षा कहा जाता है।क्लाउड सीडिंग का पायलट प्रोजेक्ट
दिल्ली सरकार ने मानसून के खत्म होने के बाद इस तकनीक का पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने का निर्णय लिया है। प्रारंभ में, यह परीक्षण 4 से 11 जुलाई के बीच आयोजित होने वाला था, लेकिन कुछ कारणों से इसे स्थगित कर दिया गया है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य वायुमंडल में मौजूद हानिकारक कणों को बारिश के माध्यम से नीचे गिराना और वायु गुणवत्ता में सुधार करना है।
अन्य देशों में क्लाउड सीडिंग का उपयोग
दिल्ली का यह कदम उन देशों की सूची में शामिल होता है, जिन्होंने पहले ही इस तकनीक का सफलतापूर्वक उपयोग किया है, जैसे अमेरिका, चीन और यूएई।
क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया
क्लाउड सीडिंग क्या है? जब आसमान में बादल होते हैं लेकिन बारिश नहीं होती, तो वैज्ञानिक सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड या ड्राई आइस जैसे रासायनिक तत्वों को हवाई जहाज या हेलीकॉप्टर से बादलों में भेजते हैं। ये तत्व जलवाष्प को आकर्षित करते हैं और बारिश के कणों में बदलने में मदद करते हैं। इस प्रक्रिया से बादलों में बर्फ के छोटे क्रिस्टल बनते हैं, जो बारिश को प्रेरित करते हैं। आमतौर पर, इस प्रक्रिया से बारिश शुरू होने में लगभग 30 मिनट लगते हैं।
प्रोजेक्ट की लागत और प्रगति
दिल्ली में इससे पहले भी क्लाउड सीडिंग की योजना बनाई गई थी, लेकिन संसाधनों की कमी और तकनीकी बाधाओं के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका। इस बार, DGCA (नागर विमानन महानिदेशालय) से इस प्रक्रिया के लिए औपचारिक अनुमति प्राप्त कर ली गई है। इस मिशन का नेतृत्व IIT कानपुर के वैज्ञानिकों ने किया है, जिन्होंने विशेष फॉर्मूला और रणनीति तैयार की है। इस परियोजना पर अनुमानित खर्च लगभग 3.21 करोड़ रुपये है। यदि इसका परिणाम सकारात्मक रहा, तो यह दिल्ली की वायु को शुद्ध करने में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।