दिल्ली हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: शादी तोड़ने पर प्रेमी या प्रेमिका से हर्जाना वसूलने का अधिकार
दिल्ली हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि यदि कोई तीसरा व्यक्ति जानबूझकर किसी विवाहित रिश्ते में हस्तक्षेप करता है, तो पीड़ित जीवनसाथी उस व्यक्ति के खिलाफ हर्जाने का दावा कर सकता है। अदालत ने इसे 'एलियनएशन ऑफ अफेक्शन' (स्नेह का अलगाव) मानते हुए एक 'सिविल गलती' (Tort) के रूप में स्वीकार किया है।
यह निर्णय जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव की पीठ ने एक महिला की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया, जिसमें उसने अपने पति की कथित प्रेमिका से 4 करोड़ रुपये के हर्जाने की मांग की थी।
याचिका में बताया गया कि दंपति की शादी 2012 में हुई थी और 2018 में उनके जुड़वां बच्चे हुए। कुछ समय बाद, आरोपी महिला ने पति की कंपनी में विश्लेषक के रूप में काम करना शुरू किया और यह जानते हुए कि वह शादीशुदा है, उसके साथ घनिष्ठ संबंध बना लिए। इसके परिणामस्वरूप पति-पत्नी के रिश्ते में खटास आ गई और 2023 में पति ने क्रूरता के आधार पर तलाक की अर्जी दी। पत्नी ने इस साल हाईकोर्ट में याचिका दायर कर प्रेमिका पर अपने वैवाहिक जीवन को बर्बाद करने का आरोप लगाते हुए हर्जाना मांगा।
पत्नी की ओर से वकील मालविका राजकोटिया ने तर्क किया कि हर पत्नी को अपने पति के स्नेह और साथ का अधिकार है, जिसे आरोपी महिला ने जानबूझकर छीन लिया।
वहीं, पति के वकील प्रभजीत जौहर और प्रेमिका के वकील केसी जैन ने इस मुकदमे का विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह मामला तलाक की कार्यवाही के खिलाफ केवल एक 'जवाबी हमला' है। उन्होंने यह भी कहा कि जब व्यभिचार का मामला पहले से ही फैमिली कोर्ट में है, तो इसी मुद्दे पर एक और कार्यवाही नहीं हो सकती।
अदालत ने प्रतिवादियों की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम जैसे वैवाहिक कानून किसी तीसरे पक्ष के खिलाफ कोई उपचार प्रदान नहीं करते हैं। इसलिए, जब कोई कानूनी रोक नहीं है, तो पीड़ित पक्ष सिविल कोर्ट में हर्जाने की मांग कर सकता है।
जस्टिस कौरव ने कहा, "यह दावा पूरी तरह से एक सामान्य सिविल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है। फैमिली कोर्ट में तलाक का मामला लंबित होना, हर्जाने के लिए अलग से सिविल मुकदमा दायर करने में कोई रुकावट नहीं बनेगा।"
फैसले में यह भी कहा गया कि किसी रिश्ते को समाप्त करने या बदलने की व्यक्तिगत स्वतंत्रता अपराध नहीं है, लेकिन इसके 'नागरिक परिणाम' हो सकते हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि कोई जीवनसाथी शादी टूटने से हुए नुकसान का दावा करता है, तो कानून यह मानता है कि उस नुकसान को पहुँचाने वालों से मुआवज़ा मांगा जा सकता है।
हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि तीसरे पक्ष की देनदारी तभी बनेगी जब उसने जानबूझकर गलत तरीके से हस्तक्षेप किया हो। यदि जीवनसाथी अपनी मर्जी से संबंध बनाता है, तो तीसरे पक्ष की जिम्मेदारी समाप्त हो सकती है।