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देवरिया में सूखे का संकट: 87 प्रतिशत कम बारिश से किसान परेशान

इस वर्ष, देवरिया जिला सूखे की गंभीर समस्या का सामना कर रहा है, जहां 87 प्रतिशत कम बारिश हुई है। पिछले 16 हफ्तों में बारिश सामान्य स्तर पर नहीं आई, जिससे किसानों की चिंता बढ़ गई है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि यह स्थिति जलवायु परिवर्तन का संकेत है। कुशीनगर में भी बारिश की कमी ने धान की खेती को प्रभावित किया है। जानें इस संकट के पीछे के कारण और इसके प्रभावों के बारे में।
 

देवरिया में सूखे की स्थिति

देवरिया सूखा 2025: इस वर्ष, भारत में मॉनसून ने विभिन्न प्रकार के मौसम का अनुभव कराया है। कुछ क्षेत्रों में भारी बारिश ने तबाही मचाई, जबकि अन्य स्थानों पर बारिश की कमी देखी गई। पूर्वी उत्तर प्रदेश का देवरिया जिला इस बार सबसे सूखा क्षेत्र बन गया है, जहां 87 प्रतिशत कम बारिश हुई है। औसतन 759.4 मिमी बारिश की अपेक्षा, देवरिया में केवल 97.2 मिमी वर्षा हुई है, जिससे किसानों की चिंता बढ़ गई है।


मॉनसून का असामान्य व्यवहार

पिछले 16 हफ्तों के दौरान, देवरिया में एक भी सप्ताह ऐसा नहीं रहा जब बारिश सामान्य स्तर पर हुई हो। कई बार बारिश की कमी 90 से 100 प्रतिशत तक पहुंच गई, जबकि कभी-कभी यह 80 से 90 प्रतिशत तक रही। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि यह स्थिति ऐतिहासिक है और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को दर्शाती है। किसानों और विपक्ष ने सूखा घोषित करने की मांग की है, लेकिन प्रशासन ने अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।


कृषि विज्ञान केंद्र की रिपोर्ट

देवरिया कृषि विज्ञान केंद्र के अनुसार, पिछले चार वर्षों से यहां बारिश में लगातार कमी देखी जा रही है, जो जलवायु परिवर्तन का संकेत है। 2023 और 2024 में क्रमशः 46 और 43 प्रतिशत कम बारिश हुई थी।


पूर्वांचल में बारिश की कमी

आईएमडी की रिपोर्ट के अनुसार, पूर्वी उत्तर प्रदेश के 42 जिलों में औसतन 16 प्रतिशत कम बारिश हुई है। हालांकि, देवरिया और कुशीनगर जैसे जिलों में बारिश की कमी अधिक है। कुशीनगर में 64 प्रतिशत और देवरिया में 87 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।


पश्चिम यूपी की स्थिति

जहां पूर्वांचल बारिश की कमी का सामना कर रहा है, वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 12 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है। यहां केवल कुछ जिले, जैसे पीलीभीत, कमी की श्रेणी में आते हैं। यह दर्शाता है कि मॉनसून का पैटर्न अब क्षेत्रीय असंतुलन दिखा रहा है।


किसानों की समस्याएं

कुशीनगर में धान की खेती पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। सिंचाई की व्यवस्था होने के बावजूद, उत्पादन में 40-60 प्रतिशत तक गिरावट आ रही है। पिछले चार-पांच वर्षों से मॉनसून पूर्वांचल को बाईपास कर रहा है।


आईएमडी के आंकड़े

आईएमडी के आंकड़ों के अनुसार, पूर्वांचल के जिलों जैसे आजमगढ़, गोरखपुर, मऊ, जौनपुर और सिद्धार्थनगर में भी 20 से 53 प्रतिशत तक कम बारिश हुई है। यह प्रवृत्ति पिछले कुछ वर्षों से जारी है।


जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार की स्थिति केवल बारिश की अनियमितता नहीं है, बल्कि जलवायु परिवर्तन का संकेत भी है। बिहार के पड़ोसी जिलों में भी यही स्थिति है, जो पूरे गंगा बेसिन में मौसम के पैटर्न में बदलाव को दर्शाता है।