धीरूभाई अंबानी: एक साधारण जीवन से असाधारण सफलता की कहानी
धीरूभाई अंबानी का जन्मदिन: एक प्रेरणा
नई दिल्ली: 28 दिसंबर का दिन भारतीय उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस दिन का संबंध उस व्यक्ति से है जिसने स्वतंत्रता के बाद भारत में व्यापार और निवेश की धारणा को बदल दिया। धीरूभाई अंबानी की जयंती केवल एक उद्योगपति का जन्मदिन नहीं है, बल्कि उस दृष्टिकोण का उत्सव है जिसने आम लोगों को शेयर बाजार से जोड़ा और बड़े सपने देखने की प्रेरणा दी।
धीरूभाई का प्रारंभिक जीवन
धीरूभाई अंबानी का जन्म 28 दिसंबर 1932 को गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के चोरवाड़ गांव में हुआ। उनके पिता, हीराचंद अंबानी, एक साधारण स्कूल शिक्षक थे। उनका जीवन ईमानदारी और अनुशासन से भरा था, लेकिन आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी। धीरूभाई का बचपन एक छोटे से घर में बीता, जहां उन्होंने जल्दी ही समझ लिया कि गरीबी केवल भौतिक सुविधाएं नहीं छीनती, बल्कि आत्म-सम्मान को भी प्रभावित करती है। यही अनुभव उनकी ताकत बना।
शिक्षा और स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी
जूनागढ़ के बहादुर कंजी हाई स्कूल में पढ़ाई के दौरान, धीरूभाई स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े। वे जूनागढ़ विद्यार्थी संघ के सचिव बने। इस समय उनकी एक विशेष आदत उभरकर सामने आई, जो आगे चलकर उनकी पहचान बनी। नियमों का पालन करते हुए भी रास्ता निकालना। एक बार भाषण पर रोक लगी, तो उन्होंने किसी और से बोलवाया, जिससे उद्देश्य पूरा हुआ। यह सोच उनके भविष्य के कारोबारी निर्णयों में भी नजर आई।
16 साल की उम्र में घर छोड़ना
1949 में मैट्रिक की पढ़ाई के बाद, धीरूभाई ने आर्थिक कारणों से घर छोड़ने का निर्णय लिया और यमन के अदन पहुंचे। उस समय अदन एक अंतरराष्ट्रीय व्यापार केंद्र था। यहां उन्हें ए बी बीसे एंड कंपनी में नौकरी मिली। अदन का बाजार उनके लिए एक विश्वविद्यालय के समान था, जहां उन्होंने असली दुनिया की पढ़ाई शुरू की।
व्यापारिक अनुभव और सीख
अदन में रहते हुए, धीरूभाई ने केवल पैसे नहीं कमाए, बल्कि अकाउंटिंग, सप्लाई चेन और अंतरराष्ट्रीय व्यापार की बारीकियों को भी सीखा। उन्होंने साधारण जीवन जीते हुए धीरे-धीरे पूंजी जुटाई। यहीं उनकी सोच बनी कि असली सफलता लंबी दौड़ की तैयारी में है, न कि जल्दबाजी में।
भारत लौटकर उद्योग की ओर कदम
कुछ वर्षों बाद, धीरूभाई भारत लौटे। उनके पास बड़ी पूंजी नहीं थी, लेकिन अनुभव और आत्मविश्वास भरपूर था। उन्होंने मसालों और यार्न के व्यापार से शुरुआत की। उस समय भारत लाइसेंस परमिट राज में था, लेकिन धीरूभाई ने सिस्टम को समझा और उसी दायरे में रास्ते निकाले।
छोटे कदम और बड़े सपने
ट्रेडिंग से मिले अनुभव ने धीरूभाई को उद्योग की ओर बढ़ने की प्रेरणा दी। उन्होंने देखा कि भारत में कपड़े की मांग बहुत बड़ी है और भविष्य पॉलिएस्टर का है। छोटे कदम और स्पष्ट रणनीति के साथ उन्होंने आगे बढ़ना शुरू किया, जो आगे चलकर रिलायंस इंडस्ट्रीज की नींव बनी।
धीरूभाई अंबानी की विरासत
आज रिलायंस इंडस्ट्रीज भारत की सबसे मूल्यवान कंपनियों में से एक है। धीरूभाई अंबानी का निधन 6 जुलाई 2002 को हुआ, लेकिन उनकी सोच आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरित करती है। एक साधारण घर से निकलकर असाधारण सफलता की यह कहानी आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा एक मिसाल बनी रहेगी।