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नई आनुवंशिक खोज से कैंसर के खतरे में वृद्धि

हाल ही में अमेरिका की एक शोध टीम ने एक महत्वपूर्ण आनुवंशिक बदलाव की खोज की है, जो इंसानों में कैंसर के खतरे को बढ़ा सकता है। यह बदलाव प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करता है, जिससे कैंसर का विकास संभव होता है। कैलिफोर्निया डेविस विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि इंसानों की प्रतिरक्षा कोशिकाएं सॉलिड ट्यूमर के खिलाफ उतनी प्रभावी नहीं हैं जितनी कि अन्य प्राइमेट्स की। इस खोज से कैंसर के नए उपचार विकसित करने की संभावनाएं बढ़ती हैं।
 

कैंसर के खतरे को बढ़ाने वाला आनुवंशिक बदलाव

नई दिल्ली: अमेरिका के वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण आनुवंशिक परिवर्तन की पहचान की है, जो इंसानों में कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकता है। यह परिवर्तन शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करता है, जिससे कैंसर का विकास संभव होता है। इस खोज का महत्व इस तथ्य में निहित है कि यह कैंसर के नए और प्रभावी उपचार विकसित करने में सहायक हो सकता है।


कैलिफोर्निया डेविस विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि इंसानों की कुछ प्रतिरक्षा कोशिकाएं, जो रोगों से लड़ने में सक्षम होती हैं, सॉलिड ट्यूमर (गांठ वाले कैंसर) के खिलाफ उतनी प्रभावी नहीं हैं जितनी कि अन्य प्राइमेट्स, जैसे कि चिंपैंजी।


नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में यह स्पष्ट हुआ है कि इंसानों और बंदरों के बीच एक छोटा सा आनुवंशिक अंतर है। यह अंतर फास लिगैंड (एफएएस-एल) नामक प्रतिरक्षा प्रोटीन में पाया जाता है, जो कैंसर से लड़ने में मदद करता है। इस छोटे से अंतर के कारण इंसानों की प्रतिरक्षा कोशिकाएं कैंसर के खिलाफ कम प्रभावी होती हैं।


इस आनुवंशिक परिवर्तन में प्लास्मिन नामक एंजाइम 'एफएएस-एल' प्रोटीन को नुकसान पहुंचाता है, जिससे प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है।


मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी और इम्यूनोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर जोगेंद्र तुशीर सिंह ने कहा, "'एफएएस-एल' प्रोटीन का यह परिवर्तन इंसानों की सोचने-समझने की क्षमता को बढ़ाता है, लेकिन कैंसर के संदर्भ में यह हानिकारक साबित होता है। यह परिवर्तन कुछ ट्यूमर को हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करने की अनुमति देता है, जिससे हमारी लड़ाई की क्षमता कम हो जाती है।"


यूसी डेविस की टीम ने यह भी पाया कि इंसानों के जीन में 'एफएएस-एल' प्रोटीन के एक छोटे हिस्से में एक विशेष परिवर्तन हुआ है। यहां प्रोटीन में एक अमीनो एसिड प्रोलाइन की जगह सेरीन आ गया है। इस परिवर्तन के कारण 'एफएएस-एल' प्रोटीन प्लास्मिन नामक एंजाइम द्वारा आसानी से काटा जाता है, जिससे इसकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है।


प्लास्मिन एक विशेष प्रकार का एंजाइम है, जिसे प्रोटीज एंजाइम कहा जाता है। यह एंजाइम ट्यूमर को सहायता प्रदान करता है और कैंसर को अधिक खतरनाक बना सकता है।


तुशीर-सिंह ने कहा, "इंसानों में चिंपैंजी और अन्य प्राइमेट्स की तुलना में कैंसर की दर अधिक है। हमें अभी भी बहुत कुछ सीखना है और प्राइमेट्स से प्राप्त ज्ञान का उपयोग करके इंसानी कैंसर इम्यूनोथेरेपी को बेहतर बनाने की दिशा में काम करना चाहिए।"