नाथद्वारा में जन्माष्टमी पर 352 साल पुरानी तोपों की सलामी
नाथद्वारा श्रीनाथजी मंदिर की अनूठी परंपरा
Nathdwara Shrinathji Temple: राजस्थान के नाथद्वारा स्थित श्रीनाथजी मंदिर जन्माष्टमी के अवसर पर अपनी विशेष परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। इस वर्ष भी, जैसे ही घड़ी ने रात के 12 बजाए, मंदिर परिसर में 352 साल पुरानी परंपरा का पालन किया गया। ठाकुरजी के जन्म के प्रतीक के रूप में मध्यरात्रि में 21 तोपों की सलामी दी गई। इस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में एकत्र हुए।
श्रीनाथजी मंदिर बोर्ड की कार्यवाहक सीईओ रक्षा पारीक ने बताया कि यह परंपरा हर साल श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाती है। उन्होंने कहा कि ठाकुरजी के आगमन पर मध्यरात्रि में तोपों की सलामी दी जाती है, जो सदियों से चली आ रही है। इस परंपरा में दो तोपें होती हैं, जिन्हें नर और मादा तोप कहा जाता है। इस बार भी इनकी पूरी जांच की गई और परंपरा का पालन पूरी निष्ठा से किया गया।
देखें मंदिर परिसर का वीडियो
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परंपरा और आस्था का अनूठा संगम
परंपरा और आस्था का अनूठा संगम
नाथद्वारा का यह आयोजन देशभर में जन्माष्टमी की विशेषता को बढ़ाता है। अन्य मंदिरों में भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव भजन, कीर्तन और झांकियों के साथ मनाया गया, वहीं श्रीनाथजी मंदिर में परंपरा और आस्था का यह अनूठा संगम देखने को मिला।
तोपों की गड़गड़ाहट गूंजा परिसर
तोपों की गड़गड़ाहट गूंजा परिसर
इस दौरान मंदिर परिसर भक्तों से भरा रहा। जैसे ही रात के 12 बजे और तोपों की गड़गड़ाहट गूंजी, श्रद्धालुओं ने 'जय श्रीकृष्ण' के जयकारे लगाए। भक्तों के चेहरों पर उल्लास और आस्था का भाव स्पष्ट दिखाई दिया।
धूमधाम से मना जन्मोत्सव
धूमधाम से मना जन्मोत्सव
देशभर में जन्माष्टमी हर्ष और उमंग के साथ मनाई गई। विभिन्न शहरों और मंदिरों में श्रद्धालुओं ने भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया। कई स्थानों पर झांकियां निकाली गईं, और भजन तथा कीर्तन ने वातावरण को भक्तिमय बना दिया। नाथद्वारा में 352 साल पुरानी यह परंपरा आज भी भगवान कृष्ण की महिमा और आस्था का प्रतीक बनी हुई है। यह आयोजन न केवल राजस्थान बल्कि पूरे देश में जन्माष्टमी के पर्व को और खास बना देता है.