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नेपाल में GEN-Z आंदोलन ने राजनीतिक बदलाव की ओर बढ़ाया कदम

नेपाल में हाल ही में हुए GEN-Z आंदोलन ने राजनीतिक परिदृश्य में एक नया मोड़ लाया है। इस आंदोलन ने केपी शर्मा ओली की सरकार को गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अब एक नए राजनीतिक दल की स्थापना की घोषणा की है। पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकार ने चुनावों को समय पर कराने का आश्वासन दिया है। GEN-Z समूह का उद्देश्य न केवल युवाओं को राजनीति में शामिल करना है, बल्कि विदेशों में बसे नेपाली नागरिकों को भी राजनीतिक भागीदारी का अधिकार दिलाना है। इस आंदोलन के पीछे भ्रष्टाचार और सरकारी प्रतिबंधों के खिलाफ प्रदर्शन का भी बड़ा हाथ है।
 

GEN-Z आंदोलन का प्रभाव

GEN-Z आंदोलन की घोषणा: हाल ही में नेपाल में हुए GEN-Z आंदोलन ने केपी शर्मा ओली की सरकार को गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद, पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार का गठन हुआ। सुशीला कार्की ने अपने पद ग्रहण करते ही यह स्पष्ट किया कि उनकी सरकार आम चुनाव को निर्धारित समय पर कराने के लिए प्रतिबद्ध है। इसी बीच, GEN-Z आंदोलन का नेतृत्व करने वाले समूह ने सक्रिय राजनीति में कदम रखने का निर्णय लिया है।


मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, 'हामी नेपाल' एनजीओ के सुदन गुरुंग के नेतृत्व में 'जेन जेड' समूह ने शनिवार को एक नई राजनीतिक पार्टी की स्थापना की योजना की घोषणा की। समूह ने यह भी बताया कि आगामी आम चुनाव में भाग लेने का निर्णय कुछ 'मूलभूत' शर्तों के पूरा होने पर निर्भर करेगा। इस घोषणा ने देश के अन्य राजनीतिक दलों में चिंता बढ़ा दी है। GEN-Z आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक, मिराज धुंगाना ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने एजेंडे को साझा किया। उनका मानना है कि नेपाल को एक ऐसी चुनाव प्रणाली की आवश्यकता है, जिसमें प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों को सीधे जनता द्वारा चुना जाए।


GEN-Z का एक अन्य प्रमुख एजेंडा यह है कि विदेशों में रहने वाले नेपाली नागरिकों को भी अपने देश की राजनीति में भागीदारी का अधिकार मिले। यह आंदोलन न केवल नेपाल के युवा मतदाताओं को आकर्षित कर रहा है, बल्कि इसे देश की राजनीतिक संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव की दिशा में एक कदम माना जा रहा है। उल्लेखनीय है कि GEN-Z आंदोलन ने भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया पर सरकारी प्रतिबंधों के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया था, जिसके परिणामस्वरूप केपी शर्मा ओली की सरकार को सत्ता से बाहर होना पड़ा।