नेपाल में युवा विद्रोह: अमेरिका की साजिश या असंतोष का परिणाम?
नेपाल में युवा विद्रोह का संदर्भ
हाल ही में, नेपाल में युवाओं का विद्रोह एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है, जिसे कुछ लोग अमेरिकी साजिश के रूप में देख रहे हैं। वामपंथी और हिंदू समर्थक दोनों ने इस गुस्से को इसी तरह से परिभाषित किया है। काठमांडू में वामपंथी दलों ने ओली-प्रचंड की सरकार को चीन के प्रभाव में लाने का आरोप लगाया है। मोदी सरकार की भूमिका भी इसमें महत्वपूर्ण मानी जा रही है, जिसने 2015 में कोलकाता बंदरगाह के माध्यम से नेपाल पर नाकाबंदी की, जिससे ओली-प्रचंड ने चीन से संबंध स्थापित किए। इस स्थिति ने नेपाल को चीन की ओर धकेल दिया।
सोशल मीडिया और राजनीतिक नरेटिव
सोशल मीडिया ने इस स्थिति को और भी जटिल बना दिया है। वामपंथी और मोदी समर्थक दोनों ने इस विद्रोह को अमेरिकी साजिश के रूप में पेश किया है। उनका मानना है कि हिंदू, चाहे वह नेपाल का हो या भारत का, वह कभी भी सड़कों पर नहीं उतर सकता। यह स्थिति दर्शाती है कि कैसे राजनीतिक दल अपने नरेटिव को स्थापित करने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं।
नेताओं का अहंकार और असंतोष
ओली, राजपक्षे और हसीना जैसे नेताओं का अहंकार ही उनके पतन का मुख्य कारण बना। इन नेताओं ने अपने राष्ट्रवाद और विकास के झूठे नरेटिव को फैलाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया। लेकिन जब युवा सड़कों पर उतरे, तो यह साबित हो गया कि असंतोष की चिंगारी कितनी भयंकर हो सकती है।
असमानता और भ्रष्टाचार का मुद्दा
नेपाल में युवा असंतोष का मुख्य कारण असमानता और भ्रष्टाचार है। कम्युनिस्ट सरकारें भले ही सर्वहारा की बात करती हों, लेकिन असल में वे भ्रष्टाचार और विलासिता में लिपटी हुई हैं। यह स्थिति केवल नेपाल तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत में भी अंबानी और अडानी जैसे उद्योगपतियों के बढ़ते प्रभाव से असमानता की समस्या बढ़ रही है।
भविष्य की चुनौतियाँ
मोदी-शाह और संघ परिवार को यह समझना होगा कि असमानता की समस्या अंततः उनके लिए भी चुनौती बन सकती है। यदि वे इसे नजरअंदाज करते हैं, तो भविष्य में उन्हें भी युवा विद्रोह का सामना करना पड़ सकता है।