नेपाल में सोशल मीडिया प्रतिबंधों के खिलाफ युवा आंदोलन की उथल-पुथल
नेपाल में युवा आंदोलन का उभार
नेपाल में सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंधों के खिलाफ युवाओं का आंदोलन देश की राजनीतिक स्थिति को हिला कर रख दिया है। काठमांडू सहित अन्य शहरों में प्रदर्शन हिंसक हो गए हैं, जिसमें संसद भवन और सुप्रीम कोर्ट जैसे संवैधानिक संस्थानों के साथ-साथ नेताओं के निवास पर भी आगजनी की गई है।
प्रधानमंत्री और मंत्रियों की भागीदारी
स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और कई अन्य मंत्रियों को देश छोड़ना पड़ा। अब सेना ने सड़कों पर उतरकर शांति बहाल करने के प्रयास तेज कर दिए हैं।
मुख्य नेता और उनकी भूमिकाएँ
इस आंदोलन में चार प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जा रही है: सुदन गुरुंग, बालेंद्र (बालेन) शाह, रबि लमिछाने और सुशीला कार्की।
सुदन गुरुंग की सक्रियता
सुदन गुरुंग का नाम सबसे पहले आता है। उन्होंने इवेंट मैनेजमेंट और नाइट लाइफ इंडस्ट्री छोड़कर सामाजिक कार्यों में कदम रखा। 2015 में भूकंप के बाद उन्होंने 'हमि नेपाल' एनजीओ की स्थापना की और कोविड महामारी के दौरान राहत कार्यों में भी सक्रिय रहे।
बालेंद्र शाह का प्रभाव
काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह, जो एक सिविल इंजीनियर और रैप आर्टिस्ट हैं, 2022 में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में मेयर बने। टाइम मैगजीन ने उन्हें 2023 में टॉप 100 उभरते नेताओं में शामिल किया।
रबि लमिछाने की भूमिका
रबि लमिछाने, जो एक पत्रकार और टीवी एंकर हैं, ने 2022 में राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की और चुनावों में 20 सीटें जीतीं। हालांकि, वह सहकारी फंड घोटाले में फंसकर जेल गए।
सुशीला कार्की का समर्थन
नेपाल की पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की ने भी इस आंदोलन को मजबूती प्रदान की। उन्होंने सरकार की गोलीबारी को हत्या करार दिया और युवाओं ने उन्हें अंतरिम प्रधानमंत्री बनाने के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया, जिसमें 2500 से अधिक समर्थन प्राप्त हुआ।