नेपाल में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ युवा आंदोलन: क्या है इसके पीछे की कहानी?
नेपाल में तनावपूर्ण स्थिति और युवा प्रदर्शन
Nepal Social Media Ban Protest : नेपाल में हालात बेहद गंभीर हो गए हैं। राजधानी काठमांडू सहित विभिन्न क्षेत्रों में युवाओं ने सोशल मीडिया पर प्रतिबंध और सरकार की भ्रष्ट नीतियों के खिलाफ सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, और एक्स (ट्विटर) जैसे 26 सोशल मीडिया ऐप्स पर बैन लगाया है, जिसके चलते यह आंदोलन भड़का। सरकार का कहना है कि ये कंपनियां नेपाल में रजिस्ट्रेशन नहीं करवा रही थीं, लेकिन जनता, खासकर जेनरेशन Z, इसे उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन मानती है।
बेकाबू हालात और सेना की कार्रवाई
बेकाबू हालात, सेना की फायरिंग में 9 की मौत
सोशल मीडिया पर बैन के बाद हजारों युवा काठमांडू में संसद भवन की ओर मार्च करने लगे। प्रदर्शन इतना उग्र हो गया कि कई प्रदर्शनकारी संसद परिसर में घुस गए और तोड़फोड़ करने लगे। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने सेना को तैनात किया। सेना की फायरिंग में अब तक 5 प्रदर्शनकारियों की मौत हो चुकी है और 80 से अधिक लोग घायल हुए हैं, जिनमें से 35 को गोली लगी है। घायलों को काठमांडू के एवरेस्ट और सिविल अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। सरकार ने कुछ क्षेत्रों में कर्फ्यू लागू कर दिया है और पुलिस को उपद्रवियों पर रबर बुलेट चलाने और आंसू गैस छोड़ने के आदेश दिए हैं।
युवाओं की अभिव्यक्ति पर हमला
सोशल मीडिया बैन, युवाओं की अभिव्यक्ति पर हमला
प्रदर्शनकारियों का मानना है कि सोशल मीडिया पर बैन केवल तकनीकी मुद्दा नहीं है, बल्कि यह सरकार द्वारा उनके बोलने और सवाल पूछने के अधिकार को कुचलने का प्रयास है। डिजिटल युग में, खासकर जेन Z के लिए, सोशल मीडिया केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि शिक्षा, करियर, रोजगार और सामाजिक संवाद का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। सरकार के इस निर्णय ने उनकी स्वतंत्रता और जीवनशैली पर सीधा प्रहार किया है, जिससे वे आक्रोशित हो गए हैं।
भ्रष्टाचार और बेरोजगारी का मुद्दा
भ्रष्टाचार और बेरोजगारी भी विरोध की बड़ी वजहें
सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के साथ-साथ सरकार की भ्रष्ट कार्यशैली और बेरोजगारी की समस्या ने इस आंदोलन को और भी व्यापक बना दिया है। युवाओं का मानना है कि सरकारी भर्तियों में पारदर्शिता की कमी है, फंड का दुरुपयोग हो रहा है और नेताओं की जवाबदेही खत्म होती जा रही है। आर्थिक मंदी के कारण नौकरियों की संख्या में भारी गिरावट आई है। इन सब कारणों से युवाओं में गहरा असंतोष पनप रहा है, जो अब आंदोलन के रूप में सड़कों पर दिखाई दे रहा है।
चीनी सेंसरशिप का आरोप
ओली सरकार पर चीनी सेंसरशिप लागू करने का आरोप
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली पर आरोप है कि वे नेपाल में चीन जैसी सेंसरशिप लागू करने का प्रयास कर रहे हैं। अचानक बिना पूर्व सूचना के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाने को लेकर उनकी मंशा पर सवाल उठाए जा रहे हैं। आलोचकों का कहना है कि ओली सरकार इंटरनेट और डिजिटल मीडिया की स्वतंत्रता को नियंत्रित करना चाहती है, ताकि जनता सरकार के खिलाफ सवाल न उठा सके। इसके विपरीत, भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर सरकार की कोई ठोस नीति नहीं दिख रही है।
स्वतःस्फूर्त आंदोलन
स्वतःस्फूर्त आंदोलन, नेतृत्वहीन लेकिन संगठित
यह आंदोलन खास बात यह है कि इसे किसी राजनीतिक दल द्वारा नहीं, बल्कि स्वतःस्फूर्त तरीके से युवाओं द्वारा शुरू किया गया है। कॉलेज के छात्र, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और युवा कार्यकर्ता बिना किसी औपचारिक संगठन के, विभिन्न शहरों में स्वतःसंगठित होकर सड़कों पर उतर आए हैं। काठमांडू के अलावा विराटनगर, बुटवल, चितवन और पोखरा जैसे शहरों में भी विरोध प्रदर्शन फैल गया है।
राजनीतिक अस्थिरता का प्रभाव
राजनीतिक अस्थिरता और गठबंधन की खींचतान
नेपाल की वर्तमान राजनीतिक स्थिति भी इस आंदोलन की पृष्ठभूमि में एक बड़ा कारण है। प्रधानमंत्री ओली की पार्टी (CPN-UML) और नेपाली कांग्रेस के बीच गृह मंत्रालय जैसे प्रमुख मंत्रालयों को लेकर मतभेद और आपसी खींचतान जारी है। इससे जनता में विश्वास की कमी और असंतोष और बढ़ गया है।
सरकार से अपील
पूर्व विदेश मंत्री ने जताई चिंता, सरकार से की अपील
नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री उपेंद्र यादव ने सरकार के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर बैन से लाखों युवा बेरोजगार हो सकते हैं, क्योंकि इन प्लेटफॉर्म्स के जरिए कई लोग स्वरोजगार कर रहे थे। उन्होंने सरकार से अपील की कि वह यह आदेश तुरंत वापस ले और युवाओं से संवाद स्थापित करे।
दक्षिण एशिया में उभरती जनक्रांतियां
दक्षिण एशिया में उभरती जनक्रांतियां
नेपाल में जो कुछ हो रहा है, वह दक्षिण एशिया में कोविड-19 के बाद उभरते राजनीतिक असंतोष का ही हिस्सा है। अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी, श्रीलंका में राजपक्षे सरकार का पतन, बांग्लादेश में शेख हसीना के खिलाफ छात्र आंदोलन और पाकिस्तान में इमरान खान के समर्थकों का विद्रोह—इन सभी घटनाओं से साफ है कि जनता अब पुराने राजनीतिक ढांचे और अपारदर्शी नीतियों के खिलाफ उठ खड़ी हो रही है। नेपाल में भी यही सिलसिला जारी है।