नौतनवा में पिता के अंतिम संस्कार की दर्दनाक तस्वीर ने जगाई मानवता की उम्मीद
पिता के अंतिम संस्कार के लिए ठेले पर ले जाते बच्चे
नौतनवा में एक हृदय विदारक दृश्य
तीन दिन पहले नौतनवा नगर के राजेंद्र नगर मोहल्ले से एक भावनात्मक तस्वीर सामने आई, जिसने सभी को झकझोर दिया। इस तस्वीर में एक 10 वर्षीय बच्चा अपने पिता के शव को ठेले पर रखकर श्मशान की ओर ले जा रहा था। यह बच्चा, देवराज, अब अपने पिता के बिना रह गया है। उसके बड़े भाई राजवीर की उम्र केवल 14 वर्ष है। पिता की मृत्यु के बाद, दोनों भाई अचानक जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गए हैं, जो किसी वयस्क के लिए भी कठिन हो सकता है।
बीमारी और आर्थिक संकट का सामना
लव कुमार पटवा लंबे समय से बीमार थे, और उनके इलाज के दौरान परिवार आर्थिक संकट में फंस गया। अंततः बीमारी ने उनकी जान ले ली। अब घर में केवल बेसहारा बच्चे रह गए हैं, जिनके पास न तो पैसे हैं और न ही सहारा। अंतिम संस्कार के समय, जब रिश्तेदारों को साथ होना चाहिए था, ये छोटे बच्चे दर-दर भटकते रहे। अंततः, छोटे बेटे देवराज ने ठेला उठाया और अपने पिता को अंतिम यात्रा पर ले गया।
सोशल मीडिया पर वायरल हुआ दृश्य
जब यह दृश्य सोशल मीडिया पर साझा हुआ, तो नगर और जिले में संवेदनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा। लोगों ने मदद के लिए आगे आना शुरू किया। कुछ ने राशन दिया, तो कुछ ने आर्थिक सहायता की। प्रशासन भी सक्रिय हुआ, और एसडीएम तथा तहसीलदार मौके पर पहुंचे। कई सामाजिक संगठन भी बच्चों के साथ खड़े दिखाई दिए।
मानवीय पहल का उदाहरण
इस घटना में नौतनवा नगर अध्यक्ष बृजेश मणि त्रिपाठी व्यक्तिगत रूप से मृतक के घर पहुंचे। उन्होंने न केवल परिजनों को सांत्वना दी, बल्कि बच्चों से मिलकर हर संभव मदद का आश्वासन भी दिया। मौके पर ही आर्थिक सहायता प्रदान की और कहा कि "ऐसे असहाय परिवारों के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी मैं वर्षों से निभाता आ रहा हूं और आगे भी निभाता रहूंगा। यह मदद कभी दिखावे के लिए नहीं रही, बल्कि यह हमारी मानवीय जिम्मेदारी है।"
उन्होंने यह भी बताया कि नौतनवा विधायक ऋषि त्रिपाठी ने स्व. लव कुमार पटवा के ब्रह्म भोज का पूरा खर्च उठाने का वादा किया है।
संवेदनाओं से उपजी उम्मीद
जिस दृश्य ने पहले नगर को आंसुओं में डुबो दिया था, वही अब समाज में उम्मीद जगाने का कारण बन गया है। नगरवासी, जनप्रतिनिधि, प्रशासन और सामाजिक संगठन सभी इस परिवार के साथ खड़े हुए हैं।
दो छोटे बच्चों की बेबसी ने यह साबित कर दिया है कि चाहे दुख कितना भी गहरा क्यों न हो, संवेदनाओं से उपजी सामाजिक ताकत हर बार इंसानियत की जीत सुनिश्चित करती है।