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पंजाब चुनावों में लोकतंत्र की हत्या का आरोप: बलविंदर धालीवाल

पंजाब के कांग्रेस विधायक बलविंदर सिंह धालीवाल ने जिला परिषद और ब्लॉक समिति चुनावों में धांधली का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने लोकतंत्र की हत्या की है और चुनावों में सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में परिणाम बदल दिए गए। धालीवाल का कहना है कि यदि सरकार को ऐसे चुनाव कराना था, तो सीधे अपने उम्मीदवारों को विजेता घोषित कर देती। जानें इस विवाद के पीछे की पूरी कहानी और इसके संभावित प्रभाव।
 

चुनावों में धांधली का आरोप

-सरकार यदि सीधे अपने उम्मीदवारों को विजेता घोषित करती, तो करोड़ों रुपए की बचत होती


चंडीगढ़: कांग्रेस विधायक और पूर्व आईएएस बलविंदर सिंह धालीवाल ने आम आदमी पार्टी और राज्य सरकार पर जिला परिषद और ब्लॉक समिति चुनावों को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार ने इन चुनावों में लोकतंत्र का उल्लंघन किया है। धालीवाल ने आरोप लगाया कि कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को नामांकन भरने से रोका गया और उनके नामांकन पत्र रद्द कर दिए गए। चुनाव परिणामों में धांधली इसका स्पष्ट प्रमाण है। उन्होंने कहा कि यदि सरकार को इस तरह के चुनाव कराना था, तो सीधे अपने उम्मीदवारों को विजेता घोषित कर देती, जिससे चुनाव पर होने वाला करोड़ों का खर्च भी बच जाता।


धालीवाल ने कहा कि लोकतंत्र का मूल सिद्धांत 'लोगों का, लोगों के द्वारा और लोगों के लिए' है। लेकिन जब प्रशासन और सरकार के दबाव में परिणाम बदल दिए जाते हैं और वोटों को गैर-कानूनी तरीके से रद्द किया जाता है, तो लोकतंत्र के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है। ऐसे में चुनाव का कोई अर्थ नहीं रह जाता। बेहतर होता कि मौजूदा सरकार और प्रशासन चुनाव कराने के बजाय सीधे अपने पसंदीदा उम्मीदवारों के नाम घोषित कर देते।


जिला परिषद चुनाव में कांग्रेस के लगभग 670 वोट रद्द कर दिए गए, जबकि आप के उम्मीदवार को 90 वोट से विजेता घोषित किया गया। क्या प्रशासन यह स्पष्ट कर सकता है कि सत्ताधारी पार्टी और विपक्षी उम्मीदवारों के लिए अलग-अलग नियम क्यों लागू किए गए? इस तरह का बंटवारा संविधान और लोगों को दो हिस्सों में बांट देगा। यही संविधान है, जिस पर ये अधिकारी सेवा में शामिल होने से पहले शपथ लेते हैं। अधिकारियों द्वारा किए जा रहे पक्षपात का यह चलन धीरे-धीरे संविधान और लोकतंत्र की आत्मा को कमजोर कर रहा है। इस पक्षपात को रोकना आवश्यक है, ताकि लोगों की इच्छाशक्ति को खत्म होने से पहले ही बचाया जा सके। सरकार द्वारा समर्थन प्राप्त उम्मीदवारों को सीधे तैनात करने से पंजाब के लोगों पर वित्तीय बोझ भी कुछ हद तक कम हो सकता है, जो पहले ही लगभग 1,20,000 रुपए प्रति व्यक्ति तक पहुंच चुका है।