पंजाब सरकार की नई पहल: मृतक पेंशनधारकों की पहचान और वसूली का अभियान
पंजाब में पेंशनधारकों की पहचान का बड़ा कदम
पंजाब न्यूज. पंजाब सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए 67,852 मृतक पेंशनधारकों की पहचान की है, जिनके खातों में वर्षों से पेंशन का भुगतान होता रहा है। यह आंकड़ा किसी गड़बड़ी का संकेत नहीं है, बल्कि सिस्टम की पारदर्शिता को दर्शाता है। सामाजिक सुरक्षा विभाग ने बैंकों और ज़िला अधिकारियों के सहयोग से इन खातों से अब तक ₹166 करोड़ की वसूली की है। इस प्रक्रिया को 'साड्डे बुज़ुर्ग, साड्डा मान' नामक विशेष सर्वेक्षण से जोड़ा गया है। यह अभियान न केवल घोटालों को रोकने के लिए है, बल्कि असली हकदारों को सम्मान दिलाने का भी है।
सामाजिक जिम्मेदारी के तहत सुधार
इस मुहिम को केवल वित्तीय जांच के रूप में नहीं देखा गया, बल्कि इसे सामाजिक जागरूकता से जोड़ा गया है। सरकार ने इसे एक सांस्कृतिक जिम्मेदारी के रूप में लिया है, जिसमें बुज़ुर्गों का सम्मान भी सुनिश्चित किया गया है और व्यवस्था को दुरुस्त किया गया है। आंगनबाड़ी सुपरवाइज़र और ज़मीनी कर्मचारियों ने घर-घर जाकर पेंशनधारकों की जानकारी एकत्र की। इससे न केवल फर्जी लाभार्थियों को हटाया गया, बल्कि जीवित और योग्य लोगों को राहत भी मिली। यह सरकारी कार्यप्रणाली की एक मानवीय मिसाल है।
बकाया राशि की वसूली की आवश्यकता
हालांकि ₹166 करोड़ की वसूली हो चुकी है, लेकिन ₹36 करोड़ अभी भी बकाया हैं। सामाजिक सुरक्षा मंत्री डॉ. बलजीत कौर ने अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए हैं कि शेष राशि की वसूली समय पर की जानी चाहिए। बैंकों को संदिग्ध खातों पर विशेष निगरानी रखने के निर्देश दिए गए हैं। ज़िला स्तर पर समय-सीमा निर्धारित की गई है ताकि रिपोर्टिंग में तेजी लाई जा सके। यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि यह धन असली लाभार्थियों तक पहुंचे।
पेंशन का महत्व
राज्य में लगभग 35 लाख लोग, जिनमें बुज़ुर्ग, विधवा, अनाथ और दिव्यांग शामिल हैं, हर महीने ₹1500 की पेंशन सीधे अपने खातों में प्राप्त कर रहे हैं। पंजाब इस तरह की डायरेक्ट ट्रांसफर प्रणाली अपनाने वाले कुछ राज्यों में से एक है। यह पारदर्शिता, ईमानदारी और तकनीक के मिश्रण का एक उदाहरण है। सरकार चाहती है कि यह प्रणाली और भी मजबूत हो, जिसके लिए बैंकिंग सिस्टम को अधिक जिम्मेदार बनाया जा रहा है।
पेंशन: विश्वास का प्रतीक
पेंशन केवल आर्थिक सहायता नहीं है, बल्कि यह सरकार और नागरिक के बीच विश्वास का एक पुल है। इस मामले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि निगरानी ढीली हो जाए, तो जनकल्याण योजनाएं भ्रष्टाचार का शिकार हो सकती हैं। इसी सोच के तहत अब हर लाभार्थी की पहचान डिजिटल रूप से जोड़ी जा रही है। आधार और बैंक खाते के लिंकिंग को अनिवार्य किया जा रहा है, ताकि मृतक के खाते में दोबारा राशि न पहुंचे।
सरकारी कर्मचारियों की सराहना
इस पूरी मुहिम में ज़मीनी कर्मचारियों की भूमिका सबसे सराहनीय रही है। विभागीय अधिकारियों, सुपरवाइज़र और बैंक प्रतिनिधियों ने फील्ड में जाकर सटीक जानकारी जुटाई। उन्होंने डेटा की शुद्धता बढ़ाई और घोटालों को रोका। सरकार ने इस अवसर पर उनकी मेहनत की सराहना की है और भविष्य में भी इस तरह की पहलों में इन्हीं पर भरोसा किया जाएगा।
सच्चे बदलाव की शुरुआत
'साड्डे बुज़ुर्ग, साड्डा मान' केवल एक नाम नहीं है, बल्कि यह एक सोच है। सरकार ने जहां एक ओर सिस्टम की सफाई की है, वहीं दूसरी ओर असली लाभार्थियों को सम्मान भी दिलाया है। इस मुहिम के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि कल्याणकारी योजनाएं अब केवल कागज़ी नहीं रहेंगी। टेक्नोलॉजी और मानवता का यह संगम आने वाले वर्षों की दिशा तय करेगा। इस मॉडल को अन्य राज्यों में भी अपनाया जा सकता है।