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पतंजलि और डाबर च्यवनप्राश विवाद: दिल्ली हाई कोर्ट में मामला पहुंचा

पतंजलि और डाबर च्यवनप्राश के बीच चल रहे विवाद ने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया है। पतंजलि ने एक आदेश के खिलाफ अपील की है, जिसमें उसे अपने विज्ञापनों से कुछ पंक्तियाँ हटाने का निर्देश दिया गया था। यह मामला केवल विज्ञापनों तक सीमित नहीं है, बल्कि आयुर्वेदिक उत्पादों की विश्वसनीयता और ब्रांड की प्रतिष्ठा से भी जुड़ा हुआ है। जानें इस विवाद के पीछे की कहानी और अदालत का क्या कहना है।
 

पतंजलि च्यवनप्राश का विवाद

Patanjali Chyavanprash Raw: योग गुरु बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद और डाबर च्यवनप्राश के बीच विवाद बढ़ता जा रहा है। यह मामला अब दिल्ली हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच में पहुंच चुका है, जहां पतंजलि ने एक आदेश के खिलाफ अपील की है, जिसमें उसे अपने विज्ञापनों से कुछ वाक्य हटाने और संशोधित करने का निर्देश दिया गया था।


यह विवाद केवल विज्ञापनों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आयुर्वेदिक उत्पादों की विश्वसनीयता और ब्रांड की छवि से भी संबंधित है।


पतंजलि की आपत्ति

अदालत के आदेश पर पतंजलि की आपत्ति


पतंजलि ने अपनी याचिका में कहा है कि उसके विज्ञापनों में डाबर च्यवनप्राश का नाम सीधे तौर पर नहीं लिया गया है। कंपनी का तर्क है कि उसका विज्ञापन किसी विशेष ब्रांड को निशाना बनाने के लिए नहीं था, बल्कि उपभोक्ताओं को अपने उत्पाद की विशेषताओं से अवगत कराने के लिए था। दूसरी ओर, दिल्ली हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने जुलाई में एक अंतरिम आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि विज्ञापनों में इस्तेमाल की गई पंक्तियां “अनुचित” और “अपमानजनक” हैं।


विवादित पंक्तियाँ

किन पंक्तियों पर विवाद?


जुलाई में दिए गए आदेश में अदालत ने पतंजलि को निर्देश दिया था कि वह “साधारण च्यवनप्राश से क्यों समझौता करें” जैसी पंक्तियों को अपने विज्ञापनों से हटाए। इसके अलावा, “जिन्हें आयुर्वेद और वेदों का ज्ञान नहीं, वे मूल च्यवनप्राश कैसे बना पाएंगे” जैसी पंक्तियों को भी हटाने का आदेश दिया गया। अदालत ने माना कि इन दावों से यह धारणा बनती है कि केवल पतंजलि के पास ही वास्तविक आयुर्वेदिक ज्ञान है और अन्य कंपनियां पारंपरिक च्यवनप्राश नहीं बना सकतीं।


डाबर की दलील

डाबर की दलील और अदालत का रुख


डाबर ने अदालत में दायर याचिका में कहा था कि पतंजलि का विज्ञापन सीधे तौर पर डाबर च्यवनप्राश को नीचा दिखाता है। कंपनी ने आरोप लगाया कि पतंजलि अन्य सभी ब्रांडों को “ordinary” यानी साधारण बताकर उनकी गुणवत्ता पर सवाल उठा रही है। अदालत ने माना कि विज्ञापन में दिए गए दावे उपभोक्ताओं को गुमराह कर सकते हैं और यह संदेश देते हैं कि केवल पतंजलि ही प्रामाणिक च्यवनप्राश बना रही है।


अगली सुनवाई

अगली सुनवाई और उम्मीदें


अब यह मामला दिल्ली हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच में जाएगा, जहां जस्टिस सी हरि शंकर और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला इसकी सुनवाई करेंगे। पतंजलि को उम्मीद है कि अदालत उसके पक्ष को सुनेगी और सिंगल जज के आदेश को पलटेगी।


वहीं, डाबर का कहना है कि वह अपने ब्रांड की प्रतिष्ठा और उपभोक्ताओं के विश्वास को बनाए रखने के लिए कानूनी लड़ाई जारी रखेगा। इस विवाद ने न केवल च्यवनप्राश बाजार में प्रतिस्पर्धा को तेज कर दिया है, बल्कि आयुर्वेदिक उत्पादों के विज्ञापन की पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े किए हैं।