×

पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची की सफाई: चुनाव आयोग ने सुनवाई रोकी

पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग ने मतदाता सूची की सफाई के लिए चल रही विशेष गहन संशोधन प्रक्रिया के तहत अनमैप्ड मतदाताओं की व्यक्तिगत सुनवाई को तकनीकी समस्याओं के कारण अस्थायी रूप से रोक दिया है। इस निर्णय से लाखों मतदाताओं को राहत मिली है, जिन्हें अब तुरंत सुनवाई के लिए नहीं जाना पड़ेगा। जानें इस प्रक्रिया के पीछे का उद्देश्य और इसके संभावित प्रभाव।
 

कोलकाता में चुनाव आयोग का निर्णय


कोलकाता: पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची की सफाई के लिए चल रही विशेष गहन संशोधन (SIR) प्रक्रिया के दौरान चुनाव आयोग ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। राज्य में कई मतदाताओं को 'अनमैप्ड' घोषित करने के बाद व्यक्तिगत सुनवाई को अस्थायी रूप से रोक दिया गया है।


यह निर्णय तकनीकी समस्याओं के कारण लिया गया है, ताकि सही मतदाताओं को अनावश्यक कठिनाई का सामना न करना पड़े। चुनाव आयोग ने इस संबंध में एक नोटिस जारी किया है और नए निर्देश भी दिए हैं।


SIR प्रक्रिया का उद्देश्य

SIR प्रक्रिया क्या है?


चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में मतदाता सूची को साफ करने के लिए विशेष गहन संशोधन (SIR) प्रक्रिया शुरू की है। इसका मुख्य उद्देश्य मृत, स्थानांतरित या फर्जी मतदाताओं के नाम हटाना और सही मतदाताओं को सूची में बनाए रखना है। यह प्रक्रिया 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले चल रही है।


इस प्रक्रिया में मतदाताओं को अपनी या अपने परिवार की जानकारी 2002 की पुरानी मतदाता सूची से जोड़ना था। जिनका नाम उस सूची से नहीं जुड़ पाया, उन्हें 'अनमैप्ड' कहा गया। राज्य में लगभग 31-32 लाख मतदाता ऐसे चिन्हित हुए थे।


अनमैप्ड मतदाताओं की स्थिति

अनमैप्ड मतदाताओं की समस्या


दिसंबर में ड्राफ्ट मतदाता सूची जारी होने के बाद लगभग 58 लाख नाम हटाए गए थे, जिनमें मृत या स्थानांतरित लोग शामिल थे। इसके अलावा, सॉफ्टवेयर के माध्यम से करीब 31 लाख लोगों को अनमैप्ड घोषित किया गया।


इन मतदाताओं को नोटिस भेजकर व्यक्तिगत सुनवाई के लिए बुलाया गया था। सुनवाई 27 दिसंबर से शुरू हुई, जिसमें लोग दस्तावेज लेकर अपनी योग्यता साबित करते। कई मतदाता सॉफ्टवेयर में अनमैप्ड दिख रहे थे, जबकि 2002 की पुरानी हार्ड कॉपी सूची में उनका या उनके परिवार का नाम मौजूद था।


सुनवाई पर रोक का कारण

सुनवाई पर क्यों लगी रोक?


राज्य के चुनाव अधिकारियों ने इस मुद्दे को उठाया। जांच में पता चला कि समस्या 2002 की मतदाता सूची के डिजिटलाइजेशन में है। उस समय की पीडीएफ फाइल को पूरी तरह सीएसवी फॉर्मेट में नहीं बदला जा सका, जिससे सॉफ्टवेयर में लिंक नहीं हो पाया।


इसके बाद राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी के कार्यालय ने सभी जिला अधिकारियों को निर्देश दिया कि ऐसे अनमैप्ड मामलों में व्यक्तिगत सुनवाई फिलहाल न बुलाई जाए। यह रोक सिर्फ उन मतदाताओं पर लागू है जो सॉफ्टवेयर में नहीं दिखे लेकिन हार्ड कॉपी में मौजूद हैं। अब इन मामलों की आगे जांच होगी और सत्यापन पूरा होने के बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी।


मतदाताओं के लिए राहत

मतदाताओं के लिए क्या मतलब?


यह निर्णय लाखों मतदाताओं के लिए राहत की खबर है। जिन्हें नोटिस मिला था, उन्हें अब तुरंत सुनवाई के लिए नहीं जाना पड़ेगा। चुनाव आयोग का कहना है कि सही मतदाताओं के नाम सुरक्षित रहेंगे। यदि बाद में कोई शिकायत या गड़बड़ी मिली, तो फिर सुनवाई हो सकती है।