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पाकिस्तान की जनसंख्या वृद्धि और IMF का टैक्स राहत से इनकार

पाकिस्तान में जनसंख्या वृद्धि और कमजोर अर्थव्यवस्था के बीच, IMF ने गर्भनिरोधक साधनों पर टैक्स राहत के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है। यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब देश जनसंख्या वृद्धि और सीमित संसाधनों के दबाव का सामना कर रहा है। जानें इस फैसले के पीछे के कारण और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
 

पाकिस्तान की जनसंख्या और आर्थिक चुनौतियाँ

पाकिस्तान में जनसंख्या की तेजी से बढ़ती दर और कमजोर अर्थव्यवस्था के बीच, सरकार को एक बड़ा झटका तब लगा जब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने गर्भनिरोधक साधनों और सेनेटरी उत्पादों पर टैक्स में कमी के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब देश जनसंख्या वृद्धि और सीमित संसाधनों के दबाव का सामना कर रहा है।


जनसंख्या वृद्धि की दर और उसके प्रभाव

पाकिस्तान की जनसंख्या वृद्धि दर लगभग 2.55 प्रतिशत है, जो दक्षिण एशिया में सबसे अधिक मानी जाती है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, हर साल लगभग 60 लाख नए लोग देश की जनसंख्या में जुड़ते हैं। इस तेजी से बढ़ती जनसंख्या का प्रभाव खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा और रोजगार पर पड़ रहा है।


विशेषज्ञों का मानना है कि यदि परिवार नियोजन के साधन सस्ते और सुलभ नहीं हुए, तो आने वाले वर्षों में यह दबाव और बढ़ सकता है।


IMF से टैक्स राहत की मांग

पाकिस्तान सरकार ने हाल ही में गर्भनिरोधक साधनों पर लगे 18 प्रतिशत जनरल सेल्स टैक्स (GST) को हटाने का प्रस्ताव रखा था। इसका उद्देश्य कंडोम, गर्भनिरोधक दवाएं और अन्य साधनों को आम लोगों की पहुंच में लाना था। इसके साथ ही, सेनेटरी पैड और बेबी डायपर पर भी टैक्स राहत की सिफारिश की गई थी।


सरकार को उम्मीद थी कि इससे महिलाओं के स्वास्थ्य और परिवार नियोजन कार्यक्रमों को मजबूती मिलेगी।


IMF का इनकार और उसके कारण

IMF ने इस प्रस्ताव पर तुरंत सहमति देने से मना कर दिया। फंड का कहना है कि टैक्स छूट पर विचार केवल अगले संघीय बजट के दौरान किया जा सकता है। वर्तमान में पाकिस्तान को राजस्व लक्ष्य पूरे करने की सख्त जरूरत है।


टैक्स में छूट से कर प्रणाली कमजोर हो सकती है और तस्करी का खतरा बढ़ सकता है। IMF अधिकारियों के अनुसार, बेलआउट कार्यक्रम के तहत किसी भी प्रकार की राहत से पहले वित्तीय अनुशासन जरूरी है।


राजस्व पर पड़ने वाला असर

पाकिस्तान के फेडरल बोर्ड ऑफ रेवेन्यू (FBR) ने IMF से वर्चुअल बैठकों और ईमेल के जरिए यह प्रस्ताव रखा था। सरकारी आकलन के अनुसार, यदि टैक्स हटाया जाता तो सरकार को 40 से 60 करोड़ पाकिस्तानी रुपये का राजस्व नुकसान होता। IMF ने इसे मौजूदा आर्थिक हालात में जोखिम भरा कदम बताया।


महत्वपूर्ण निर्णय का प्रभाव

जनसंख्या विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भनिरोधक और स्वच्छता से जुड़े उत्पादों पर ऊंचा टैक्स महिलाओं के स्वास्थ्य, गरीब परिवारों की आर्थिक स्थिति और जनसंख्या नियंत्रण नीतियों को प्रभावित करता है।


लाहौर स्थित एक स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञ के अनुसार, यदि ये उत्पाद महंगे रहेंगे, तो सरकार को भविष्य में स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं पर कहीं अधिक खर्च करना पड़ सकता है।


आगे की संभावनाएँ

अब पाकिस्तान सरकार के पास दो ही विकल्प हैं: अगले बजट में फिर से IMF के सामने यह मुद्दा उठाना या घरेलू स्तर पर वैकल्पिक सब्सिडी मॉडल तलाशना। हालांकि, मौजूदा आर्थिक हालात को देखते हुए किसी त्वरित राहत की संभावना फिलहाल कम नजर आती है।