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पाकिस्तान की राजनीति में उथल-पुथल: क्या आसिफ जरदारी का तख्तापलट होगा?

पाकिस्तान की राजनीति में एक बार फिर से हलचल मचने की संभावना है, जहां राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और सेना प्रमुख असीम मुनीर के बीच खींचतान चल रही है। असीम मुनीर के राष्ट्रपति पद पर कब्जा करने की योजना और संविधान में बदलाव की तैयारी से राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने असीम मुनीर की आलोचना की है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान में सत्ता के लिए संघर्ष जारी है। क्या आसिफ जरदारी को हटाया जाएगा? जानें इस महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम के बारे में।
 

पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिति में बदलाव की आहट

पाकिस्तान की राजनीति में एक बार फिर से हलचल मचने की संभावना है। राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और सेना प्रमुख असीम मुनीर के बीच चल रही खींचतान की खबरें सामने आई हैं। अटकलें हैं कि असीम मुनीर ने आसिफ जरदारी को राष्ट्रपति पद से हटाने की योजना बनाई है। कहा जा रहा है कि वह जल्द ही आसिफ अली जरदारी का तख्तापलट कर सकते हैं और खुद राष्ट्रपति बनने की तैयारी कर रहे हैं। इसके साथ ही, असीम मुनीर पाकिस्तान के संविधान में बदलाव करने की भी योजना बना रहे हैं, जिससे उनकी शक्ति और बढ़ सके।


बिलावल भुट्टो का असीम मुनीर पर आरोप

पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो, जो कि राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के पुत्र हैं, ने हाल ही में असीम मुनीर पर तीखा हमला किया। उन्होंने कहा कि असीम मुनीर पाकिस्तान के लोकतंत्र को खतरे में डाल रहे हैं और उनकी गतिविधियाँ लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ हैं। यह बयान पाकिस्तान की राजनीति में नई चर्चाओं को जन्म दे रहा है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सेना के भीतर और बाहर सत्ता के लिए संघर्ष जारी है।


क्या आसिफ जरदारी को हटाया जाएगा?

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या आसिफ जरदारी खुद राष्ट्रपति पद छोड़ेंगे या उन्हें मजबूरन हटाया जाएगा। यदि ऐसा होता है, तो यह पाकिस्तान की राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत हो सकता है। एक पाकिस्तानी पत्रकार ने रिपोर्ट किया है कि असीम मुनीर जरदारी को हटाने के लिए सक्रिय हैं। इस मुद्दे पर राजनीतिक हलकों में बहस तेज हो गई है।


शहबाज शरीफ परिवार की चिंताएँ

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और उनके परिवार को अब यह चिंता सताने लगी है कि असीम मुनीर केवल राष्ट्रपति पद तक सीमित रहेंगे या फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी भी हथियाकर पूरी सत्ता अपने हाथ में ले लेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि पाकिस्तान के राजनीतिक परिदृश्य में आगे क्या बदलाव आते हैं और क्या सेना की ताकत बढ़ती है या लोकतांत्रिक संस्थाएँ अपनी स्थिति बनाए रखती हैं।


सैन्य तानाशाही की संभावना

पाकिस्तान के इतिहास में सैन्य प्रमुखों द्वारा सरकारों का तख्तापलट कोई नई बात नहीं है। 1977 में जनरल जिया उल हक ने सत्ता पर कब्जा किया था और अब एक बार फिर ऐसी परिस्थितियाँ बनती दिख रही हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान में सैन्य तानाशाही की संभावना एक बार फिर से बढ़ सकती है, जिससे लोकतंत्र समर्थक चिंतित हैं। कुछ सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने कहा है कि जुलाई का महीना पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास में हमेशा एक महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आता है और इस बार भी कुछ ऐसा ही हो सकता है।