×

पाकिस्तान के परमाणु हथियारों का रहस्य: रिचर्ड बार्लो का खुलासा

रिचर्ड बार्लो, पूर्व CIA अधिकारी, ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के विकास के पीछे के उद्देश्यों का खुलासा किया है। उन्होंने बताया कि कैसे पाकिस्तान का लक्ष्य भारत के खिलाफ एक शक्ति बनाना था, लेकिन यह इस्लामिक बम बनाने की दिशा में बदल गया। इसके अलावा, इजरायल ने पाकिस्तान के परमाणु संयंत्र पर हमले की योजना बनाई थी, जिसे इंदिरा गांधी की सरकार ने अस्वीकार कर दिया। इस लेख में जानें इस महत्वपूर्ण विषय के बारे में और भी जानकारी।
 

पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का उद्देश्य


पूर्व केंद्रीय खुफिया एजेंसी (CIA) के अधिकारी रिचर्ड बार्लो ने बताया कि पाकिस्तान ने परमाणु हथियार क्यों विकसित किए। उनका कहना है कि पाकिस्तान का मुख्य उद्देश्य भारत के खिलाफ एक शक्ति बनाना था, लेकिन समय के साथ यह प्रयास इस्लामिक बम बनाने की दिशा में बढ़ गया, जिसका लक्ष्य ईरान जैसे अन्य मुस्लिम देशों की मदद करना था।


बार्लो, जिन्होंने 1980 के दशक में पाकिस्तान के गुप्त परमाणु कार्यक्रम पर नजर रखी थी, ने बताया कि इस कार्यक्रम का श्रेय अब्दुल कादिर खान को जाता है, जिन्हें पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का जनक माना जाता है।


उन्होंने कहा, 'पाकिस्तान का परमाणु बम बनाने का उद्देश्य भारत का मुकाबला करना था, लेकिन अब्दुल कादिर खान और अन्य जनरलों का दृष्टिकोण यह था कि यह केवल पाकिस्तानी बम नहीं, बल्कि इस्लामिक बम था।'


बार्लो ने यह भी उल्लेख किया कि खान ने एक बार कहा था, 'हमें ईसाई बम, यहूदी बम, हिंदू बम मिल गया है।' यह स्पष्ट था कि पाकिस्तान अन्य मुस्लिम देशों को भी यह तकनीक प्रदान करना चाहता था। हालांकि, 'मुस्लिम बम' शब्द की शुरुआत खान से नहीं, बल्कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो से हुई थी, जिन्होंने खान को इस कार्यक्रम का प्रमुख बनाया।


बार्लो ने यह आरोप भी लगाया कि अमेरिका ने इस्लामाबाद के गुप्त परमाणु कार्यक्रम पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने 1987 और 1988 में कोई कार्रवाई नहीं की और इसके बाद के 20 से 24 वर्षों में भी कुछ नहीं किया।


वर्तमान में, दुनिया में केवल 9 देश हैं जिनके पास परमाणु हथियार हैं: रूस, अमेरिका, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, भारत, पाकिस्तान, इजरायल और उत्तर कोरिया।


इजरायल का पाकिस्तान के परमाणु संयंत्र पर हमला

बार्लो ने यह भी बताया कि इजरायल 1980 के दशक की शुरुआत में भारत के सहयोग से पाकिस्तान के कहुटा परमाणु संयंत्र पर हमला करना चाहता था, जिससे सभी समस्याओं का समाधान हो सकता था। लेकिन इंदिरा गांधी की सरकार ने इस पर सहमति नहीं दी, जो कि एक शर्मनाक स्थिति थी।