पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख की अमेरिका यात्रा: भारत के लिए नई चुनौतियाँ
पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्तों में नई गर्माहट
हाल ही में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की अमेरिका यात्रा ने वैश्विक कूटनीति और रणनीतिक समीकरणों पर नई बहस को जन्म दिया है। इस यात्रा के दौरान हुई महत्वपूर्ण बैठकों से यह स्पष्ट होता है कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच संबंधों में फिर से गर्माहट आ रही है। यह केवल सैन्य या आर्थिक सहयोग की बात नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक बड़ा भू-राजनीतिक उद्देश्य भी छिपा है।पिछले कुछ वर्षों में यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने अपने वैश्विक लक्ष्यों के तहत भारत जैसे पारंपरिक सहयोगी पर दबाव डालने की कोशिश की है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान, अमेरिका ने भारत से अपेक्षा की थी कि वह रूस से दूरी बनाए, लेकिन भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए तटस्थता का रुख अपनाया। अमेरिका ने इस स्थिति को सहजता से नहीं लिया।
भारत और अमेरिका के बीच एस-400 सौदे का विवाद
भारत और रूस के बीच एस-400 वायु रक्षा प्रणाली के सौदे को लेकर अमेरिका ने चेतावनी दी थी कि भारत पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। हालांकि, बाद में इसे टाल दिया गया, लेकिन इस प्रक्रिया में अमेरिकी नीति का दोहरापन स्पष्ट हुआ। एक ओर, अमेरिका भारत को क्वाड जैसी रणनीतिक साझेदारियों में महत्वपूर्ण स्थान देने की बात करता है, दूसरी ओर, वह भारत की रक्षा नीतियों में बाधाएँ उत्पन्न करता है।
इसी प्रकार, ईरान के साथ भारत की व्यापारिक और रणनीतिक साझेदारी, विशेषकर चाबहार बंदरगाह परियोजना और सस्ते कच्चे तेल की खरीद, भी अमेरिकी दबाव का शिकार रही है। इन फैसलों के पीछे अमेरिका की व्यापक वैश्विक रणनीति का प्रभाव देखा जा सकता है।
भारत के लिए अमेरिका और पाकिस्तान की निकटता का खतरा
यदि अमेरिका एक बार फिर पाकिस्तान के साथ सुरक्षा और कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करता है, तो यह भारत के लिए केवल सामरिक नहीं, बल्कि सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी गंभीर संकेत है। यह विडंबना है कि अमेरिका आतंकवाद से संबंधित समस्याओं पर चिंता जताता है, लेकिन पाकिस्तान जैसे देशों के साथ सहयोग बढ़ाता है, जो कट्टरपंथी समूहों को संरक्षण देने के आरोपों से घिरे हैं।
यह व्यवहार दर्शाता है कि अमेरिका की विदेश नीति में स्थायित्व से अधिक अवसरवाद हावी है। जब अमेरिका को भारत की आवश्यकता होती है, तो वह सहयोग की बातें करता है, और जब पाकिस्तान रणनीतिक रूप से उपयोगी लगता है, तो भारत की सुरक्षा चिंताओं को नजरअंदाज कर देता है।
भारत की विदेश नीति में आवश्यक परिवर्तन
इस बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में, भारत के लिए यह समय है कि वह अपनी विदेश नीति को और अधिक स्पष्ट और आत्मनिर्भर बनाए। रूस, फ्रांस, ईरान और आसियान देशों के साथ बहुपक्षीय सहयोग को मजबूत करना आवश्यक है। अमेरिका के साथ संवाद बनाए रखना चाहिए, लेकिन अपने दीर्घकालिक हितों की कीमत पर नहीं।
भारत को अपने रक्षा उद्योग में आत्मनिर्भरता को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए, ताकि किसी बाहरी दबाव से उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति कमजोर न पड़े। अमेरिका और पाकिस्तान की बढ़ती निकटता केवल एक तात्कालिक घटना नहीं है, बल्कि यह संकेत है कि वैश्विक शक्तियाँ बदल रही हैं। भारत को इस समीकरण में अपनी स्थिति सोच-समझकर तय करनी होगी।