पाकिस्तान-चीन संबंधों में नई गहराई, बांग्लादेश का बढ़ता जुड़ाव
हाल ही में पाकिस्तान और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच हुई वार्ता ने द्विपक्षीय संबंधों को नई दिशा दी है। इस वार्ता में CPEC 2.0 और ग्वादर पोर्ट पर जोर दिया गया। साथ ही, बांग्लादेश का पाकिस्तान और चीन के साथ बढ़ता जुड़ाव भारत के लिए चिंता का विषय बन गया है। प्रधानमंत्री मोदी की आगामी चीन यात्रा इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत को अपनी सुरक्षा और कूटनीति को मजबूत करने की आवश्यकता है। जानिए इन घटनाओं का भारत पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।
Aug 22, 2025, 17:41 IST
दक्षिण एशिया में महत्वपूर्ण घटनाएँ
हाल ही में दक्षिण एशिया में दो महत्वपूर्ण घटनाएँ घटित हुई हैं। इस्लामाबाद में पाकिस्तान और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच छठी रणनीतिक वार्ता आयोजित की गई, जिसमें दोनों देशों ने अपने द्विपक्षीय संबंधों की गहन समीक्षा की। इस वार्ता में CPEC 2.0, ग्वादर पोर्ट और काराकोरम हाईवे परियोजना की प्रगति को तेज करने पर जोर दिया गया। इसके साथ ही, चीन ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का आश्वासन दिया और आतंकवाद के खिलाफ उसके प्रयासों की सराहना की।
बांग्लादेश का पाकिस्तान और चीन के साथ बढ़ता संबंध
इसके अलावा, बांग्लादेश का पाकिस्तान और चीन के साथ संबंध भी मजबूत हो रहा है। इसमें बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच डिप्लोमैटिक और आधिकारिक पासपोर्ट धारकों के लिए वीज़ा-फ्री यात्रा का समझौता, पाकिस्तान के वाणिज्य मंत्री का ढाका दौरा और बांग्लादेश के सेनाध्यक्ष का चीन दौरा शामिल हैं। ये घटनाएँ भारत के लिए चिंता का विषय हैं, खासकर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन की यात्रा पर जाने वाले हैं।
भारत के लिए रणनीतिक चुनौतियाँ
चीन और पाकिस्तान लंबे समय से खुद को 'आयरन ब्रदर्स' के रूप में पहचानते हैं। CPEC के उन्नत संस्करण और ग्वादर पोर्ट के संयुक्त विकास पर सहमति भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हिंद महासागर में चीन की स्थिति को मजबूत करेगा। इसके अलावा, काराकोरम हाईवे का पुनर्निर्माण पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है, जिस पर भारत पहले ही आपत्ति जता चुका है। चीन पाकिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था को सहारा देकर उसे अपने करीब ला रहा है, जिससे भारत के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बनने का खतरा बढ़ रहा है।
बांग्लादेश के साथ तनाव और संभावित खतरे
बांग्लादेश और भारत के बीच जल वितरण, सीमा विवाद और राजनीतिक मुद्दों को लेकर तनाव बना हुआ है। ऐसे में बांग्लादेश का चीन और पाकिस्तान के साथ नज़दीकी बढ़ाना भारत के लिए एक चेतावनी है। वीज़ा-फ्री समझौता पाकिस्तान और बांग्लादेश के रिश्तों को नई ऊर्जा देगा, और ढाका तथा बीजिंग के बीच सैन्य सहयोग भारत की पूर्वी सीमाओं पर नई चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकता है। इसके अलावा, पाकिस्तान के साथ आर्थिक साझेदारी का बढ़ना भारत-बांग्लादेश व्यापारिक संतुलन को प्रभावित कर सकता है।
भारत को क्या कदम उठाने चाहिए?
भारत को ढाका और बीजिंग दोनों के साथ संतुलित संवाद बनाए रखना चाहिए। विशेष रूप से बांग्लादेश के साथ संबंधों को मजबूत करना आवश्यक है ताकि वह चीन-पाक धुरी का हिस्सा न बने। CPEC और ग्वादर जैसी परियोजनाएँ भारत की सुरक्षा और समुद्री रणनीति को सीधे प्रभावित करती हैं, इसलिए भारतीय नौसेना और खुफिया तंत्र को इन गतिविधियों पर करीबी नज़र रखनी चाहिए। इसके अलावा, पड़ोसियों के साथ आर्थिक और व्यापारिक रिश्तों को गहराकर भारत उनकी चीन पर निर्भरता को कम कर सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा का महत्व
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लंबे समय के बाद चीन की यात्रा पर जाने वाले हैं, तब पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ चीन की बढ़ती नज़दीकी इस यात्रा को और संवेदनशील बनाती है। भारत को चीन के साथ बातचीत में PoK में CPEC गतिविधियों और ढाका-इस्लामाबाद-बीजिंग समीकरण पर अपनी चिंताओं को स्पष्ट रूप से व्यक्त करना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी को अपनी यात्रा का उपयोग यह संदेश देने के लिए करना चाहिए कि भारत-चीन सहयोग तभी टिकाऊ होगा जब चीन भारत की सुरक्षा और संप्रभुता संबंधी चिंताओं का सम्मान करे।
निष्कर्ष
पाकिस्तान-चीन साझेदारी और बांग्लादेश का झुकाव भारत की कूटनीति और सुरक्षा दोनों के लिए नए इम्तिहान खड़े कर रहा है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा इस संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। भारत को संतुलित, सतर्क और सक्रिय कूटनीति के साथ-साथ मजबूत आर्थिक और सुरक्षा रणनीति अपनानी होगी, ताकि वह पड़ोस में बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों के बीच अपनी स्थिति को मजबूत बनाए रख सके।