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पूर्व सांसद उदित राज ने ऑपरेशन महादेव पर उठाए गंभीर सवाल

पूर्व सांसद उदित राज ने हाल ही में सेना के ऑपरेशन महादेव पर गंभीर सवाल उठाए हैं, जिससे सुरक्षा मुद्दों पर नई बहस छिड़ गई है। उनका आरोप है कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले के मुख्य आरोपी को पहले ही गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उसे संसद में चर्चा से पहले मार दिया गया। उन्होंने सरकार पर इस मामले को 'इवेंट मैनेजमेंट' के रूप में पेश करने का आरोप लगाया है। जानें, क्या हैं उनके तर्क और सुरक्षा व्यवस्था की खामियों पर उनकी राय।
 

सुरक्षा मुद्दों पर नई बहस

पूर्व सांसद और कांग्रेस के प्रमुख नेता उदित राज ने हाल ही में सेना के 'ऑपरेशन महादेव' पर गंभीर सवाल उठाए हैं, जिससे सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर नई बहस शुरू हो गई है। उनका कहना है कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले के मुख्य संदिग्ध को संभवतः पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन उसे संसद में चर्चा से पहले ही मार दिया गया। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि वह इस मामले को 'इवेंट मैनेजमेंट' के रूप में पेश कर रही है।


उदित राज ने मीडिया से बातचीत में कहा कि सेना कई बार सरकार के दबाव में काम करने को मजबूर होती है, जिससे आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई में बाधाएं आती हैं। उन्होंने यह सवाल उठाया कि यदि आतंकवादी पहले ही पकड़े गए थे, तो उन्हें पहले क्यों नहीं खत्म किया गया? और यदि कार्रवाई अब की गई है, तो क्या यह समय पर नहीं की गई? उनका तर्क है कि ऑपरेशन को संसद में चर्चा से जोड़कर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश की जा रही है।


उन्होंने यह भी कहा कि यदि सुरक्षा व्यवस्था सही होती, तो पहलगाम जैसे हमले को रोका जा सकता था। उनके अनुसार, बीएसएफ, सीआरपीएफ, और स्थानीय पुलिस की तैनाती के बावजूद सुरक्षा में चूक हुई, जिसके लिए सरकार को संसद में माफी मांगनी चाहिए। उदित राज ने सरकार की उस भूमिका पर भी सवाल उठाए, जिसने कहा जाता है कि सेना के कदमों को सीमित किया है ताकि राजनीतिक दबाव में रहकर कार्रवाई की जा सके।


यह मामला न केवल सुरक्षा एजेंसियों की क्षमता पर सवाल उठाता है, बल्कि राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप की लड़ाई को भी तेज कर देता है। आम नागरिकों के लिए यह चिंता का विषय है कि आतंकवादी हमलों से सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए क्या रणनीतियाँ अपनाई जा रही हैं और सरकार की जवाबदेही कहां तक है। इसके साथ ही यह भी चर्चा का केंद्र बना है कि कैसे संवेदनशील मुद्दों को राजनीति का हिस्सा बनाया जाता है, जिससे सुरक्षा के असली मुद्दे अक्सर दब जाते हैं।