पैकेजिंग पेपर की मांग में दहाई अंकों की वृद्धि की उम्मीद: आईपीपीटीए
चंडीगढ़ में आयोजित एक सेमिनार में आईपीपीटीए के अधिकारियों ने बताया कि सिंगल यूज प्लास्टिक के विकल्प के रूप में पैकेजिंग पेपर और पेपरबोर्ड की मांग अगले दशक में दहाई अंकों में बढ़ने की उम्मीद है। इस वृद्धि के पीछे एफएमसीजी, फार्मा और फूड एंड बेवरेज सेक्टर के प्रमुख ब्रांड्स की बढ़ती मांग है। जानें इस विषय पर और क्या कहा गया है और कैसे यह पर्यावरण के लिए फायदेमंद हो सकता है।
Jun 4, 2025, 21:27 IST
पैकेजिंग पेपर की बढ़ती मांग
चंडीगढ़ समाचार: सिंगल यूज प्लास्टिक के विकल्प के रूप में पैकेजिंग पेपर और पेपरबोर्ड की मांग अगले दशक में दहाई अंकों में बढ़ने की संभावना है। यह जानकारी इंडियन पेपर मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन (आईपीएमए) के अध्यक्ष और नैनी पेपर्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक, श्री पवन अग्रवाल ने दी। उन्होंने यह बात इंडियन पल्प एंड पेपर टेक्निकल एसोसिएशन (आईपीपीटीए) द्वारा आयोजित एक सेमिनार में कही, जिसका विषय था 'सिंगल यूज प्लास्टिक के स्थान पर पेपर की बैरियर कोटिंग'। इस अवसर पर आईपीपीटीए के अध्यक्ष श्री पवन खेतान, उपाध्यक्ष श्री एस. वी. आर. कृष्णन और महासचिव श्री एम. के. गोयल ने भी अपने विचार साझा किए।
आंकड़ों के अनुसार, कुल 2.3 करोड़ टन के घरेलू पेपर बाजार में पैकेजिंग पेपर और बोर्ड की हिस्सेदारी 1.5 करोड़ टन है। पिछले कुछ वर्षों में इसमें 8 से 9 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि देखी गई है। श्री अग्रवाल ने बताया कि एफएमसीजी, फार्मा और फूड एंड बेवरेज सेक्टर के प्रमुख ब्रांड्स से मांग बढ़ रही है। विभिन्न क्षेत्रों में इसके उपयोग को बढ़ाने के लिए पेपर की बैरियर कोटिंग आवश्यक है।
आईपीपीटीए के अध्यक्ष श्री पवन खेतान ने कहा कि कागज सिंगल यूज प्लास्टिक का एकमात्र ऐसा विकल्प है, जो तकनीकी रूप से व्यावहारिक, किफायती और पर्यावरण के अनुकूल है। वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक का उत्पादन हर साल 50 करोड़ टन तक पहुंच गया है, जिसमें लगभग 24 करोड़ टन (औसतन 30 किलोग्राम प्रति व्यक्ति) कचरा बनता है, जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है। बैरियर कोटेड पेपर एक सुरक्षित, बायोडिग्रेडेबल और रीसाइक्लेबल विकल्प प्रदान करता है। इसमें निवेश करके हम पर्यावरण संरक्षण और सर्कुलर इकोनॉमी में महत्वपूर्ण प्रगति कर सकते हैं। 2030 तक बैरियर कोटेड पेपर का वैश्विक बाजार 11 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, जो 5 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर्शाता है। भारत की बड़ी जनसंख्या और युवा वर्ग को देखते हुए, इसमें से 10 प्रतिशत मांग विभिन्न क्षेत्रों से उत्पन्न होने की संभावना है।