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प्रधानमंत्री मोदी ने एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस पर ध्यान केंद्रित किया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) के गंभीर मुद्दे पर प्रकाश डाला। AIIMS की डॉ. पूर्वा माथुर ने बताया कि आईसीयू में एंटीबायोटिक का अत्यधिक उपयोग इस समस्या को बढ़ा रहा है। उन्होंने बताया कि AMR केवल अस्पतालों में ही नहीं, बल्कि समुदाय में भी फैल रहा है। यदि एंटीबायोटिक्स का विवेकपूर्ण उपयोग नहीं किया गया, तो सामान्य संक्रमण भी जानलेवा हो सकते हैं। जानें इस गंभीर स्वास्थ्य चुनौती के बारे में और क्या कदम उठाए जा सकते हैं।
 

एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस का गंभीर मुद्दा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के 129वें एपिसोड में एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) के विषय को उठाते हुए इसे एक गंभीर स्वास्थ्य चुनौती के रूप में प्रस्तुत किया। इस संदर्भ में, AIIMS दिल्ली के ट्रॉमा सेंटर की माइक्रोबायोलॉजी यूनिट की प्रमुख, डॉ. पूर्वा माथुर ने बताया कि अस्पतालों, विशेषकर आईसीयू में, एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक प्रयोग हो रहा है, जिससे AMR की समस्या तेजी से बढ़ रही है।



डॉ. माथुर ने बताया कि आईसीयू को AMR का एक “हॉटस्पॉट” माना जाता है, क्योंकि यहां गंभीर रोगियों के उपचार में बड़ी मात्रा में और विभिन्न प्रकार की एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया जाता है। यदि इन दवाओं का विवेकपूर्ण और सीमित उपयोग नहीं किया गया, तो बैक्टीरिया इन दवाओं के प्रति प्रतिरोधी बन सकते हैं, जिससे उपचार में कठिनाई होती है।


उन्होंने यह भी बताया कि 2015 से AIIMS ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के सहयोग से देशभर में लगभग 200 आईसीयू का एक व्यापक नेटवर्क स्थापित किया है। इस नेटवर्क का उद्देश्य एंटीबायोटिक उपयोग और रेजिस्टेंस के पैटर्न की निगरानी करना, डेटा एकत्र करना और इसके आधार पर बेहतर उपचार नीतियों का निर्माण करना है। इससे यह समझने में मदद मिलती है कि किन दवाओं का कहां और कैसे प्रभावी उपयोग किया जा सकता है।


प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाना महत्वपूर्ण है, क्योंकि AMR केवल अस्पतालों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समुदाय में भी फैल रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते एंटीबायोटिक्स के विवेकपूर्ण उपयोग, सही निदान और जागरूकता पर ध्यान नहीं दिया गया, तो सामान्य संक्रमण भी जानलेवा हो सकते हैं।


डॉ. माथुर ने यह भी कहा कि डॉक्टरों, मरीजों और आम जनता—सभी की जिम्मेदारी है कि वे एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग सोच-समझकर करें। यही कदम भविष्य में इस गंभीर खतरे का सामना करने का सबसे प्रभावी तरीका है।