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प्रयागराज की रामलीला: 120 साल पुराना सिंहासन और उसकी परंपरा

प्रयागराज की रामलीला में 120 साल पुराना सिंहासन एक महत्वपूर्ण परंपरा है। इस लेख में जानें कैसे यह सिंहासन और इसकी परंपरा दशहरे के दौरान जीवित रहती है। प्रभु राम और लक्ष्मण की भव्यता के साथ निकलने वाली श्रृंगार चौकी की कहानी भी जानें।
 

प्रयागराज की रामलीला की अनोखी परंपरा

दशहरा के नजदीक आते ही लोग नवरात्रि और रामलीला के आयोजन को लेकर उत्साहित रहते हैं। रामलीला का आयोजन विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न तरीकों से किया जाता है, कुछ जगह भव्य तो कुछ स्थानों पर साधारण तरीके से। आज हम प्रयागराज की रामलीला के बारे में जानेंगे। यहां दशहरे के अवसर पर भोर में श्रृंगार चौकी निकालने की एक पुरानी परंपरा आज भी जीवित है, जिसे श्री पथरचट्टी रामलीला कमेटी द्वारा आयोजित किया जाता है।

इस परंपरा के तहत प्रभु राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ सिंहासन पर विराजमान होकर निकलते हैं। भगवान श्री राम के लिए जो सिंहासन तैयार किया गया है, वह 120 वर्ष पुराना है। यह छह क्विंटल का सिंहासन इतना चमकदार है कि यह सोने जैसा प्रतीत होता है। इसे जडियल टोला के नत्थू राम जडिया और उनके मित्र बलदेव ने बनवाया था। वर्तमान में इस कमेटी के श्रृंगार चौकी समिति के महामंत्री राजेश कुमार सिंह जड़िया हैं, जो नत्थू राम के परनाना हैं।

राजेश ने बताया कि उनके परनाना की भगवान राम के प्रति गहरी श्रद्धा थी, इसलिए उन्होंने अपने मित्र के साथ मिलकर यह छह क्विंटल का सिंहासन बनवाया, जिसमें बीस कारीगरों ने पांच महीने तक मेहनत की। इस सिंहासन में लाखों की संख्या में नग जड़वाए गए थे। इसे नत्थू राम ने दीपक की रोशनी में अपने आवास पर तैयार किया था। बरेली के राधेश्याम कथावाचक की रामायण पर आधारित रामलीला में डॉक्टर पिता-पुत्र की भूमिका निभाते हैं, और आज भी रामलीला के दौरान पुष्प, केला, मोती और पोत की जो चौकियां निकलती हैं, उनमें यही सिंहासन होता है।

श्रृंगार चौकी वंशीधर कोठी से शुरू होकर कोतवाली, ठठेरी बाजार, जानसेनगंज, निरंजन टॉकीज चौराहा, चमेली बाई धर्मशाला होते हुए परनाना के आवास पर समाप्त होती है। राजेश ने बताया कि पिछले वर्ष इस सिंहासन की मरम्मत कराई गई थी, जिसमें हजारों नग जड़वाए गए थे।