बाबरी मस्जिद विध्वंस की 33वीं वर्षगांठ: एक ऐतिहासिक पुनरावलोकन
बाबरी मस्जिद का विध्वंस: एक ऐतिहासिक घटना
राजीव रंजन तिवारी | 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में हुई घटना ने भारतीय राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव डाला। इस दिन बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ, जिसके परिणामस्वरूप कई राज्य सरकारें गिर गईं और एक नई राजनीतिक धारा का उदय हुआ। आज, 33 साल बाद, हम इस घटना के प्रभावों को देख सकते हैं, जिसमें भाजपा की सरकारें कई राज्यों में स्थापित हुई हैं।
बाबरी मस्जिद का विध्वंस स्वतंत्रता के बाद की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है, जिसने देश के राजनीतिक और सामाजिक ताने-बाने को हिला कर रख दिया। इस घटना के बाद से, यह मुद्दा भारतीय राजनीति में लगातार गूंजता रहा है। सीबीआई की चार्जशीट के अनुसार, भाजपा के नेता लाल कृष्ण आडवाणी इस विवाद के मुख्य सूत्रधार रहे।
विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या, काशी और मथुरा के मंदिरों को मुक्त करने का अभियान चलाया, जिसके तहत आडवाणी ने रथयात्रा की। 1991 में भाजपा की सरकार बनने के बाद, कल्याण सिंह ने इस योजना में सक्रिय भूमिका निभाई। 5 दिसंबर 1992 को एक गोपनीय बैठक में विवादित ढांचे को गिराने का निर्णय लिया गया।
आडवाणी ने 6 दिसंबर को कहा था कि यह कारसेवा का अंतिम दिन है। जब उन्हें पता चला कि केंद्रीय बल अयोध्या की ओर बढ़ रहे हैं, तो उन्होंने जनता से राष्ट्रीय राजमार्ग रोकने का आग्रह किया। अभियोजन पक्ष का कहना है कि आडवाणी ने मुख्यमंत्री को संदेश दिया कि वे विवादित ढांचे को गिराने तक त्यागपत्र न दें।
स्थानीय प्रशासन ने ढांचे को गिराने से रोकने का कोई प्रयास नहीं किया। चार्जशीट में कहा गया है कि कल्याण सिंह उन तेरह लोगों में शामिल थे, जिन पर मस्जिद गिराने के षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप है।
बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद देश में साम्प्रदायिक हिंसा भड़क उठी, जिससे कई लोगों की जान गई। इस घटना ने हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच संघर्ष को जन्म दिया।
केंद्र सरकार ने इस घटना के बाद चार राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया, जो एक ऐतिहासिक राजनीतिक घटना थी। भाजपा ने इस अवसर का उपयोग हिंदुत्व के मुद्दे को बढ़ावा देने के लिए किया।
अब, नरेंद्र मोदी की सरकार के तहत, भाजपा देश के अधिकांश राज्यों में शासन कर रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का ध्यान इस बात पर है कि क्या यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहेगी।