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बिहार चुनाव 2025: RJD के आरोपों से चुनाव आयोग में मचा हड़कंप

बिहार में 2025 विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाते हुए एक वीडियो साझा किया है, जिसमें एक मतदाता का नाम विवादास्पद तरीके से दर्ज है। आरजेडी का दावा है कि विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया के तहत गरीब और दलित मतदाताओं को सूची से हटाया जा रहा है। चुनाव आयोग इसे आवश्यक कदम मानता है। यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है, और सभी की नजरें चुनाव आयोग के जवाब पर टिकी हैं।
 

बिहार में चुनावी विवाद गहराता

Bihar Election 2025: बिहार में 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने चुनाव आयोग पर कई गंभीर आरोप लगाते हुए राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। मंगलवार को आरजेडी ने एक वीडियो साझा किया, जिसमें एक मतदाता का नाम मधु कुमारी, पति का नाम 'हसबैंड हसबैंड' और माता का नाम 'इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया' दर्शाया गया है। यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से फैल रहा है, जिससे बिहार की राजनीति में नया बवाल खड़ा हो गया है। आरजेडी का कहना है कि विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के तहत गरीब, दलित और मुस्लिम मतदाताओं को मतदाता सूची से हटाया जा रहा है, जिसे वह 'वोटबंदी' का नाम दे रहे हैं। दूसरी ओर, चुनाव आयोग और एनडीए इसे मतदाता सूची की शुद्धता के लिए आवश्यक कदम मानते हैं। यह विवाद अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है, और सभी की नजरें चुनाव आयोग के जवाब पर टिकी हैं।


RJD का कड़ा आरोप

आरजेडी ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया पर लिखा, 'पति का नाम हसबैंड हसबैंड, माता का नाम, इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया।' इस पोस्ट में आरजेडी ने SIR प्रक्रिया को 'NRC का बैकडोर और वोटिंग अधिकारों की डकैती' करार दिया। तेजस्वी यादव ने इसे और बढ़ाते हुए कहा, 'यह पूरी प्रक्रिया दलितों, पिछड़ों और प्रवासी मजदूरों के खिलाफ एक सोची-समझी साजिश है। अगर एक सीट से सिर्फ 1% वोटर भी हटाए गए, तो 3,200 वोटों का नुकसान होगा, जो कई सीटों पर हार-जीत का खेल बदल सकता है।' आरजेडी के इस गंभीर आरोप ने बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर होने वाले चुनाव में राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है, जो अब हर जगह चर्चा का विषय बन गया है।


चुनाव आयोग का स्पष्टीकरण

चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को बिहार में SIR प्रक्रिया की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची से गैर-नागरिकों और मृत व्यक्तियों के नाम हटाना और योग्य नागरिकों को जोड़ना है। आयोग के अनुसार, '2003 के बाद यह पहला बड़ा पुनरीक्षण है।' इस प्रक्रिया में अब तक 61 से 64 लाख नाम हटाए गए हैं, जिनमें 18 लाख मृत वोटर और 26 लाख ऐसे लोग शामिल हैं, जो बिहार से बाहर चले गए हैं। आयोग ने 11 दस्तावेजों की सूची जारी की है, जिसमें आधार, राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र शामिल नहीं हैं, जिस पर विपक्ष ने सवाल उठाए हैं।


गरीब और प्रवासियों पर प्रभाव

आरजेडी का कहना है कि SIR प्रक्रिया गरीबों और प्रवासी मजदूरों के लिए अव्यावहारिक है, क्योंकि जन्म प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज ग्रामीण बिहार में हर किसी के पास नहीं होते। तेजस्वी यादव ने इसे 'BJP-RSS की साजिश' करार देते हुए कहा कि सीमांचल जैसे क्षेत्रों में, जहां 47% मुस्लिम आबादी है, मुस्लिम और दलित वोटरों को निशाना बनाया जा रहा है। आरजेडी का कहना है कि यह प्रक्रिया महागठबंधन के वोट बैंक को कमजोर करने की कोशिश है।


सुप्रीम कोर्ट में याचिका

इस मुद्दे पर आरजेडी, कांग्रेस, टीएमसी, एआईएमआईएम और इंडिया गठबंधन के अन्य दलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। 7 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण सुनवाई शुरू की, जिसमें चुनाव आयोग को मतदाताओं की सुविधा के लिए आधार, राशन कार्ड और वोटर आईडी जैसे दस्तावेजों को जोड़ने का सुझाव दिया। हालांकि, कोर्ट ने SIR प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसके बाद आयोग को प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति मिली। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि चुनाव से ठीक पहले इस प्रक्रिया को शुरू करना संदिग्ध है और इससे लाखों वोटरों के अधिकार छिन सकते हैं।


अगले कदम की प्रतीक्षा

आरजेडी ने इस मुद्दे को बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एक प्रमुख मुद्दा बना लिया है। मधु कुमारी के मतदाता विवरण में पति का नाम 'हसबैंड हसबैंड', माता का नाम 'इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया', मकान संख्या 1130 और उम्र 22 साल दर्ज होने का दावा कर आरजेडी ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। अब चुनाव आयोग के जवाब का इंतजार है, जो यह स्पष्ट करेगा कि आरजेडी का यह आरोप कितना सही है।