बिहार चुनाव 2025: बीजेपी की रणनीति और लालू यादव का मुद्दा
बिहार में चुनावी माहौल
Bihar election 2025: बिहार में चुनावी गतिविधियाँ तेज हो चुकी हैं। विभिन्न राजनीतिक दल जनता को आकर्षित करने के लिए अपने-अपने तरीके से प्रयास कर रहे हैं। एक ओर, सरकार अपनी वापसी के लिए हर संभव प्रयास कर रही है, वहीं विपक्ष बेरोजगारी, कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों को उठाकर सरकार की नाकामी को उजागर कर रहा है। जातियों के मुद्दे भी चुनावी रणनीति का हिस्सा बन गए हैं, क्योंकि चुनाव की शुरुआत आर्थिक पैकेज और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से होती है, लेकिन अंत में यह जाति के मुद्दों में बदल जाता है। इस संदर्भ में, आइए जानते हैं कि बीजेपी लालू यादव की स्थिति को कमजोर करने के लिए क्या कदम उठा रही है। यह मामला उनके जन्मदिन पर वायरल हुए एक वीडियो से जुड़ा है, जिसके चलते बीजेपी ने उनसे माफी की मांग की है, अन्यथा आंदोलन की चेतावनी दी है।
बीजेपी की रणनीति
चक्रव्यूह तोड़ने में जुटी बीजेपी
लालू यादव की राजनीतिक यात्रा 1990 में शुरू हुई, जब वे बिहार के मुख्यमंत्री बने। वे 1997 तक इस पद पर रहे, और उनकी पत्नी राबड़ी देवी 2000 से 2005 तक मुख्यमंत्री रहीं। लालू यादव ने अपनी राजनीति की नींव दो जातियों, मुस्लिम और पिछड़े यादव, पर रखी। अब बीजेपी इसी चक्रव्यूह को तोड़ने की कोशिश कर रही है। उनके जन्मदिन पर एक कार्यकर्ता भीमराव आंबेडकर का चित्र लेकर आया, जिस पर बीजेपी ने आरोप लगाया कि लालू यादव ने इस चित्र के साथ अनुचित व्यवहार किया। बीजेपी ने इस मुद्दे को गांव-गांव तक पहुंचाने की योजना बनाई है।
केंद्रीय मंत्रियों की टीम
बीजेपी ने उतारी मंत्रियों की फौज
जैसे ही मामला बढ़ा, केंद्रीय नेतृत्व ने बिहार में केंद्रीय मंत्रियों की टीम भेजी है, जिसमें भूपेंद्र यादव, शिवराज सिंह चौहान और अर्जुन राम मेघवाल शामिल हैं। इन मंत्रियों ने लालू यादव से माफी की मांग की है। वहीं, बिहार सरकार में बीजेपी के मंत्री जनक राम आज राज्यपाल आरिफ खान से मुलाकात करेंगे।
दलित और अति पिछड़ा वोट
दलितों-अति पिछड़ों को साधने की कवायद
बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, अति पिछड़ा वर्ग की आबादी 36.01 प्रतिशत है। इनमें कई जातियाँ शामिल हैं, जैसे बढ़ई, कुशवाहा, मुसहर और कुर्मी। इन जातियों के वोट कुछ बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को और कुछ आरजेडी को जाते हैं। बीजेपी की कोशिश है कि छोटी जातियों को अपने पाले में लाया जाए। इसके अलावा, 20 प्रतिशत दलित आबादी पूरी तरह से एनडीए के पक्ष में नहीं है, जबकि 7 प्रतिशत पासवान अभी भी एलजेपी के समर्थन में हैं। बीजेपी इन वोटों को अपने पक्ष में करने के लिए प्रयासरत है।
भविष्य की संभावनाएँ
अब देखना यह है कि बीजेपी की यह रणनीति कितनी सफल होती है। यदि चुनाव से पहले यह मुद्दा गर्माता है, तो आरजेडी को नुकसान उठाना पड़ सकता है।