बिहार में SIR विवाद: चुनाव आयोग और विपक्ष के बीच बढ़ी तनातनी
बिहार में SIR पर सियासी घमासान
बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर राजनीतिक विवाद तेज हो गया है। विपक्षी दलों ने इस अभियान पर चुनाव आयोग को कठघरे में खड़ा किया है, जबकि आयोग ने स्पष्ट जवाब दिया है। इंडिया ब्लॉक के नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल हाल ही में चुनाव आयोग से मिला और SIR पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई। उनका कहना है कि इस प्रक्रिया के चलते लाखों मतदाताओं के नाम सूची से हट सकते हैं।
चुनाव आयोग का स्पष्टीकरण
विपक्ष के विरोध के बावजूद, चुनाव आयोग ने दोहराया है कि 9.87 करोड़ मतदाताओं का सत्यापन किया जा रहा है, जिसमें मृत्यु, पलायन या सामान्य निवास की पुष्टि शामिल है। आयोग का कहना है कि जो लोग अपनी पहचान प्रस्तुत करेंगे, उनके नाम सूची में जोड़े जाएंगे। यह प्रक्रिया उन मतदाताओं को हटाने में मदद करेगी जो या तो दिवंगत हो चुके हैं या अपने विधानसभा क्षेत्र में सामान्य निवासी नहीं हैं।
आपत्ति की प्रक्रिया
हस्ताक्षरित एन्यूमरेशन फॉर्म के साथ संलग्न दस्तावेजों के आधार पर, मसौदा मतदाता सूची में शामिल प्रत्येक नाम की पात्रता की जांच की जाएगी। मतदाता सूची के प्रकाशन के बाद, 2 अगस्त 2025 से किसी भी राजनीतिक दल या आम जनता के सदस्य द्वारा दावे और आपत्तियां प्रस्तुत की जा सकती हैं।
बूथ स्तर के अधिकारी और ऑनलाइन सत्यापन
इस प्रक्रिया के लिए एक लाख से अधिक बूथ स्तर के अधिकारी बिहार में कार्यरत हैं। आयोग ने यह भी बताया कि 3 जुलाई से जो लोग बिहार से बाहर हैं, वे ऑनलाइन माध्यम से भी अपना सत्यापन कर सकते हैं। हालांकि, विपक्षी दल चुनाव आयोग के साथ-साथ एनडीए पर भी सवाल उठा रहे हैं कि वे इस प्रक्रिया का समर्थन क्यों कर रहे हैं?
विपक्ष का आरोप
SIR की परिभाषा
अनुच्छेद 326 में मतदाता बनने की पात्रता का उल्लेख है। केवल 18 वर्ष से अधिक आयु के भारतीय नागरिक और उस निर्वाचन क्षेत्र के सामान्य निवासी ही मतदाता बनने के योग्य हैं। बिहार में सभी राजनीतिक दलों की भागीदारी के साथ प्रत्येक मतदाता की पात्रता की पुष्टि के लिए सत्यापन प्रक्रिया शुरू की गई है, जिसे विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) कहा जाता है।