बिहार में बाहुबली नेताओं की सियासत का अंत: चुनावी भविष्य अनिश्चित
बिहार चुनाव 2025: बाहुबली नेताओं का प्रभाव घटता
Bihar Elections 2025: बिहार की राजनीतिक परिदृश्य में बाहुबली नेताओं का प्रभाव अब धीरे-धीरे समाप्त होता दिखाई दे रहा है। पहले, जब बिहार की राजनीति में इन नेताओं का खौफ था, अब उनकी शक्ति में कमी आ गई है। इन नेताओं ने अपने आपराधिक अतीत को राजनीतिक सुरक्षा कवच के रूप में इस्तेमाल किया, लेकिन अब उनकी चुनावी दावेदारी और सीटों पर प्रभाव कमजोर हो गया है।
बाहुबली नेता आनंद मोहन की राजनीतिक स्थिति अब संकट में है। उनकी पत्नी लवली आनंद JDU से सांसद हैं, लेकिन उनके बेटे चेतन आनंद का राजनीतिक भविष्य अनिश्चित बना हुआ है। आनंद मोहन के लिए अपने परिवार के सदस्य को चुनावी मैदान में उतारना अब आसान नहीं है। 2020 में RJD से विधायक बने उनके बेटे को जेडीयू से टिकट मिल सकता है, लेकिन राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में उनकी उम्मीदवारी मजबूत नहीं दिखती।
अनंत सिंह की पत्नी की राजनीतिक संभावनाएं
अनंत सिंह की पत्नि की सियासी राह?
बिहार के मोकामा क्षेत्र में प्रभावशाली रहे बाहुबली अनंत सिंह का प्रभाव अब घटता जा रहा है। जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने अपनी पत्नी नीलम देवी को राजनीति में आगे बढ़ाया, लेकिन अब यह सवाल उठता है कि क्या नीलम देवी को जेडीयू से टिकट मिलेगा। 2024 के चुनाव में उनकी राजनीतिक स्थिति अभी भी अनिश्चित है।
शहाबुद्दीन की विरासत का पतन
शहाबुद्दीन की विरासत भी कमजोर
लालू यादव के शासन में शहाबुद्दीन का राजनीतिक वर्चस्व था, लेकिन उनकी सजा के बाद यह पूरी तरह समाप्त हो गया है। उनकी पत्नी हिना शहाब और बेटा ओसामा शहाब आरजेडी में शामिल हो गए हैं, लेकिन अब उनके लिए टिकट की संभावना बहुत कम है।
अन्य बाहुबली नेताओं की स्थिति
सुरजभान सिंह, जो मोकामा से विधायक रहे थे और मुंगेर से उनकी पत्नी सांसद रही थीं, अब हत्या के मामले में सजा के कारण चुनावी राजनीति से बाहर हो गए हैं। मुंगेर में ललन और अनंत सिंह के बढ़ते प्रभाव ने उनके राजनीतिक प्रभाव को और कम किया है। सुनील पांडेय, जो कभी भोजपुर में प्रभावशाली थे, अब अपनी सियासी पकड़ खोते नजर आ रहे हैं। उनके बेटे विशाल पांडेय अब बीजेपी से विधायक बने हैं, लेकिन सुनील पांडेय का पहले जैसा वर्चस्व अब मुश्किल हो गया है।
मुन्ना शुक्ला (विजय कुमार शुक्ला) ने अपनी पत्नी अन्नू शुक्ला को विधायक बनवाया, लेकिन अब उनकी पार्टी आरजेडी से टिकट मिलने की स्थिति स्पष्ट नहीं है। प्रभुनाथ सिंह की राजनीति भी हाशिए पर पहुंच गई है, और उनके बेटे रणधीर सिंह की उम्मीदवारी भी अब अधर में लटकी हुई है। राजन तिवारी, जिनका एक समय बिहार की सियासत में खासा दबदबा था, अब विधानसभा चुनाव में जीतने की संभावना से जूझ रहे हैं। पप्पू यादव, जो कभी कोसी इलाके के दबंग नेता थे, अब अपनी छवि बदलने की कोशिशों में लगे हैं, लेकिन उनका सियासी असर घट चुका है।
बाहुबलियों की सियासत का भविष्य
कमजोर हो रही है बाहुबलियों की सियासत?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पिछले कुछ वर्षों में बाहुबलियों की सियासत कमजोर हुई है। अब उनकी जगह उनकी पत्नी या बेटा चुनावी राजनीति में उतरते हैं, लेकिन बदला हुआ राजनीतिक माहौल और जनता की जागरूकता ने उनकी ताकत को कम कर दिया है। अब राजनीतिक दल भी इन बाहुबलियों को टिकट देने से कतराने लगे हैं। बिहार की राजनीति में बदलाव और नई चुनौतियां बाहुबलियों के लिए मुश्किलें पैदा कर रही हैं।