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बिहार में बिजली की खपत में 20 वर्षों में 12 गुना वृद्धि

बिहार में पिछले 20 वर्षों में बिजली की खपत में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है, जो 12 गुना तक पहुँच गई है। 2005 में 700 मेगावॉट से बढ़कर 2025 में 8,428 मेगावॉट तक पहुँचने की उम्मीद है। प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत में भी 5 गुना वृद्धि हुई है। जानें इस वृद्धि के पीछे के कारण और राज्य में बिजली की उपलब्धता के आंकड़े।
 

बिजली की मांग में निरंतर वृद्धि

पिछले दो दशकों में बिहार में ऊर्जा की मांग और खपत में लगातार वृद्धि देखी गई है। 2005 में राज्य में बिजली की खपत 700 मेगावॉट थी, जो अब 2025 में 8,428 मेगावॉट तक पहुँचने की उम्मीद है। 2012 में यह आंकड़ा 1,751 मेगावॉट और 2014 में 2,831 मेगावॉट था। ऊर्जा विभाग के आंकड़ों के अनुसार, मांग में यह वृद्धि पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ाने की आवश्यकता को दर्शाती है। मुख्यमंत्री विद्युत संबंध निश्चय योजना के तहत, सभी घरों को अक्टूबर 2018 में निर्धारित समय से 5 महीने पहले बिजली कनेक्शन प्रदान किया गया था, जिसे बाद में सौभाग्य योजना का नाम दिया गया।


प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत में वृद्धि

राज्य में पिछले 20 वर्षों में प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत में लगभग 5 गुना वृद्धि हुई है। 2005 में यह 75 किलोवॉट थी, जो 2025 में 363 किलोवॉट तक पहुँचने की संभावना है। 2012 में यह 134 किलोवॉट और 2014 में 160 किलोवॉट थी। इसके साथ ही, उपभोक्ताओं की संख्या में भी 12 गुना से अधिक की वृद्धि हुई है। 2005 में बिजली उपभोक्ताओं की संख्या 17 लाख थी, जो 2025 में 2 करोड़ 14 लाख तक पहुँचने का अनुमान है।


शहरों और गांवों में बिजली की उपलब्धता

वर्तमान में, बिहार के सभी शहरों और गांवों में औसतन 22 से 24 घंटे बिजली उपलब्ध है। शहरी क्षेत्रों में यह औसतन 23-24 घंटे और ग्रामीण क्षेत्रों में 22-23 घंटे है। 2005 में, शहरी क्षेत्रों में बिजली की उपलब्धता केवल 10-12 घंटे थी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 5-6 घंटे थी। 2012 में शहरी क्षेत्रों में बिजली की उपलब्धता 14-16 घंटे और ग्रामीण क्षेत्रों में 8-10 घंटे थी। 2014 में यह आंकड़ा शहरी क्षेत्रों में 20-21 घंटे और ग्रामीण क्षेत्रों में 14-16 घंटे तक पहुँच गया। 2005 में विद्युतीकृत गांवों की संख्या 14,020 से बढ़कर 39,073 हो गई है, और 2025 में विद्युतीकृत टोलों की संख्या 1,06,249 होने की उम्मीद है।