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बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण पर नागरिकों की प्रतिक्रिया

बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण अभियान को लेकर नागरिकों में उत्साह और चिंताएँ दोनों हैं। जबकि कुछ लोग इसे उत्सव की तरह मना रहे हैं, वहीं कई नागरिक इस प्रक्रिया को लेकर परेशान हैं। प्रवासी नागरिकों की चिंताएँ और राजनीतिक दलों की चिंताएँ भी इस मुद्दे को जटिल बना रही हैं। जानें इस अभियान का असली मकसद क्या है और यह कैसे प्रभावित कर सकता है बिहार के नागरिकों को।
 

बिहार में मतदाता सूची का उत्सव

चुनाव आयोग, बिहार सरकार, भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यू के अनुसार, बिहार के लोग मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण अभियान में उत्साहपूर्वक भाग ले रहे हैं। लोग इसे एक उत्सव की तरह मना रहे हैं। ढोल-नगाड़े बजाते हुए, नए कपड़े पहनकर और नाचते-गाते हुए, वे मतगणना प्रपत्र भरने के लिए जा रहे हैं। बूथ लेवल अधिकारियों का स्वागत करते हुए, बिहार के लोग इस अवसर को अपने लिए धन्य मानते हैं और चुनाव आयोग का आभार व्यक्त कर रहे हैं।


उत्साह के पीछे की सच्चाई

हालांकि, चुनाव आयोग के दावों के विपरीत, कई नागरिक इस प्रक्रिया से परेशान हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि अचानक यह स्थिति क्यों उत्पन्न हुई। बिहार में जन्म लेने के अलावा, उन्होंने क्या गलती की कि उन्हें इस प्रयोग के लिए चुना गया? वे महसूस कर रहे हैं कि उन्हें प्रयोगशाला के चूहों की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।


प्रवासी नागरिकों की चिंताएँ

बिहार से बाहर रहने वाले प्रवासी नागरिक भी इस प्रक्रिया को लेकर चिंतित हैं। उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा कि वे कैसे मतगणना प्रपत्र भरें और आवश्यक दस्तावेज कैसे जुटाएं। कई युवा जो हाल ही में मतदाता बने थे, अब नए सिरे से मतदाता बनने के लिए कहे जाने पर हैरान हैं।


राजनीतिक चिंताएँ

राजद और कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियों को इस बात की चिंता है कि उनके समर्थकों के नाम कट सकते हैं। अल्पसंख्यकों के नाम कटने की आशंका के साथ-साथ, दलित और पिछड़ी जातियों के नागरिकों के पास भी नागरिकता प्रमाणित करने वाले दस्तावेज नहीं हैं।


सामाजिक सुरक्षा के लाभों का खतरा

भाजपा और जनता दल यू के नेताओं को यह समझना चाहिए कि चुनाव आयोग के इस अभियान से गरीबों और वंचितों में यह संदेश जा रहा है कि उन्हें मतदान के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा के लाभों से भी वंचित किया जा रहा है। राशन कार्ड या आधार कार्ड के बिना, उन्हें मिलने वाले लाभों का खतरा बढ़ गया है।


आगे की संभावनाएँ

हालांकि, यह संभव है कि कुछ लोगों के नाम मतदाता सूची में बने रहें, लेकिन उनके मन में आशंका बनी रहेगी। पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान भी इसी तरह की आशंकाएँ फैली थीं। यदि चुनाव आयोग ने 10 प्रतिशत लोगों के नाम काटे, तो इसका बड़ा असर होगा। ऐसे में, यदि नाराज नागरिक चुपचाप बदला लेने के लिए वोट करें, तो यह एनडीए के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है।