बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण: चुनाव आयोग के नए प्रयोग पर उठे सवाल
मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण अभियान
चुनाव आयोग द्वारा बिहार में चलाए जा रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान को संयोग नहीं माना जा सकता। यह एक प्रयोग का हिस्सा है, जिसे पश्चिम बंगाल और असम में भी लागू किया जाएगा। यह ध्यान देने योग्य है कि भाजपा ने पिछले साल झारखंड चुनाव में इस प्रयोग का उपयोग नहीं किया, जबकि झारखंड भी उन राज्यों में शामिल है जहां भाजपा के नेता बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे को उठाते हैं। संथालपरगना में बांग्लादेशी मुस्लिमों की बड़ी संख्या में बस्तियां हैं, जिन्होंने आदिवासी लड़कियों से विवाह किया है। हालांकि, जो प्रयोग झारखंड में नहीं हुआ, वह अब बिहार में हो रहा है, और इसके बाद पश्चिम बंगाल और असम की बारी आएगी।
मतदाता सूची के पुनरीक्षण की आवश्यकता
बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले सभी मतदाताओं को फिर से मतदाता बनने के लिए कहा गया है। यह सवाल उठता है कि अचानक इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी और यह अभियान विधानसभा चुनाव से चार महीने पहले क्यों शुरू किया गया? चुनाव आयोग ने 25 जून को इस पुनरीक्षण की घोषणा की और 25 जुलाई तक लगभग आठ करोड़ मतदाताओं का सत्यापन करने का लक्ष्य रखा है। इसके बाद एक अगस्त को अंतरिम मतदाता सूची जारी की जाएगी।
प्रमाणपत्रों की आवश्यकता
चुनाव आयोग ने कहा है कि लगभग पांच करोड़ मतदाता, जिनका नाम 2003 के पुनरीक्षण के बाद सूची में है, को केवल एनुमेरेशन फॉर्म भरना होगा। जबकि अन्य तीन करोड़ मतदाताओं को जन्म प्रमाणपत्र या अन्य पहचान पत्र प्रस्तुत करना होगा। यह प्रक्रिया जटिल है और समयसीमा के भीतर पूरी करना संभव नहीं लगता।
बिहार के बाहर रहने वाले मतदाता
बिहार के लाखों लोग जो राज्य से बाहर रहते हैं, उन्हें भी मतदाता सूची में बने रहने के लिए अपने दस्तावेज और तस्वीरें भेजनी होंगी। यह प्रक्रिया उनके लिए कठिनाई पैदा कर सकती है, खासकर जब वे अपने काम में व्यस्त हैं।
चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल
इस अभियान से चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठता है। विपक्षी दलों का आरोप है कि यह प्रक्रिया नागरिकता के सत्यापन के लिए है, न कि केवल मतदाता सत्यापन के लिए। इससे अल्पसंख्यक मतदाताओं के नाम कटने की आशंका बढ़ गई है।
भाजपा की चुनावी रणनीति
क्या भाजपा मतदाताओं के नाम कटवा कर बिहार में चुनाव जीतने की योजना बना रही है? पिछले कुछ महीनों की राजनीति से यह संकेत मिल रहा है कि भाजपा किसी भी हाल में चुनाव जीतना चाहती है। विपक्ष का आरोप है कि बिना किसी विशेष अभियान के लाखों मतदाताओं के नाम काटे गए हैं।