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बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण: बीएलओ पर बढ़ा कार्यभार और आत्महत्याओं का मामला

बिहार में विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण के दौरान बूथ लेवल ऑफिसर्स (बीएलओ) की आत्महत्याओं ने गंभीर चिंता पैदा कर दी है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आरोप लगाया है कि निर्वाचन आयोग ने अनियोजित तरीके से कार्य थोपकर बीएलओ पर अत्यधिक दबाव डाला है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद, कार्य की प्रगति धीमी है, जिससे बीएलओ की स्थिति और भी कठिन हो गई है। जानें इस मुद्दे की पूरी जानकारी और इसके पीछे की राजनीति।
 

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और बीएलओ की स्थिति

बिहार में विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण (एसआईआर) के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए हैं। अब 12 राज्यों में एसआईआर के तहत उन उपायों को लागू किया गया है, जिससे बूथ लेवल ऑफिसर्स (बीएलओ) पर कार्य का बोझ बढ़ गया है।


हाल ही में, मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण के दौरान कई बीएलओ की मौत ने इस विवादास्पद प्रक्रिया में नया मोड़ ला दिया है। बुधवार को पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले से बीएलओ शांतिमुनी एक्का की आत्महत्या की खबर आई। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि एसआईआर कार्य के दौरान अब तक 28 लोगों की जान जा चुकी है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह सब 'काम के अत्यधिक दबाव, भय और अनिश्चितता' के कारण हुआ है, और इसके लिए निर्वाचन आयोग जिम्मेदार है, जिसने 'अनियोजित' तरीके से यह कार्य थोप दिया। इससे पहले, केरल और राजस्थान से भी एक-एक बीएलओ की मृत्यु की सूचना मिली थी।


मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, बिहार में एसआईआर के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कई सुधारात्मक निर्देश दिए हैं। अब 12 राज्यों में लागू एसआईआर में इन उपायों को शामिल किया गया है, जिससे बीएलओ पर सत्यापन और डेटा को डिजिटल करने का कार्य बढ़ गया है। दूरदराज के क्षेत्रों में नेटवर्क की कमी और गरीब बस्तियों में दस्तावेजों की जांच एक कठिन प्रक्रिया बन गई है। इन कार्यों के लिए समयसीमा निर्धारित की गई है, लेकिन व्यावहारिक समस्याओं के कारण इसे पूरा करना कई स्थानों पर चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार, एसआईआर के पहले चरण का आधा समय बीत जाने के बावजूद, बुधवार तक केवल 16 प्रतिशत फॉर्म्स को डिजिटल किया जा सका।


उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा चार प्रतिशत से भी कम था। इसलिए यह आरोप सही प्रतीत होता है कि निर्वाचन आयोग ने व्यावहारिक दृष्टिकोण नहीं अपनाया। उसने जल्दबाजी में और बिना सभी पक्षों को विश्वास में लिए इस महत्वपूर्ण कार्य की शुरुआत की। ममता बनर्जी ने कहा कि 'पहले जिस प्रक्रिया को पूरा करने में तीन साल लगते थे, अब चुनाव से ठीक पहले राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिए आयोग ने बीएलओ पर अमानवीय बोझ डाल दिया है।' यह बयान राजनीतिक प्रेरणा से भरा हो सकता है, लेकिन निर्वाचन आयोग की व्यावहारिक दृष्टि की कमी की धारणा मजबूत होती जा रही है।